बाढ़ रोकने को बनाई गई परियोजना ही बाढ़ में बह गईं

 

घाघरा और शारदा नदियों की बाढ़ और कटान से प्रभावित 20 गांवों को बचाने के लिए 17 करोड़ रुपयों की लागत वाली तीन परियोजनाएं नेताओं के नाम के पत्थरों के साथ बह गईं। बह गईं ये परियोजनाएं सिस्टम का सच बता रही हैं। प्रभावित गांवों के लोगों का कहना है कि परियोजनाएं भले ही करोड़ों रुपयों की बनी थीं। पर काम धेले भर का भी नहीं हुआ। न उनका गांव बचा और न ही सरकार के पैसे ही।

धौरहरा तहसील के समदहा गांव के पास लगा पत्थर कह रहा है कि सरकारी रुपया पानी में बह गया। 5.95 करोड़ रुपयों की लागत से रैनी, समदहा, पसियन पुरवा, चिकना जती, चहमलपुर, बेलवा मोती, सरगड़ा, वीरबाबा पुरवा और खगियापुर को शारदा नदी से बचाने के लिए एक परियोजना का शिलान्यास किया गया था। करीब छह करोड़ रुपये में बांस-बल्ली और बालू की कुछ बोरियां डालकर काम पूरा कर दिया गया। जिस जगह पर बचाव का काम किया गया। वहां पानी बह रहा है। इसी तरह बाछेपारा गांव में 5.18 करोड़ रुपयों से घाघरा नदी के दाहिने किनारे पर बचाव परियोजना का शिलान्यास करीब दो साल पहले किया था। ये परियोजना पूरी हो जाती तो बाछेपारा, बिंजहा, भटपुरवा और घारीदास पुरवा घाघरा के कहर से बच जाते। मगर यहां भी मंत्री, सांसद और विधायक के नाम का लगा पत्थर लगाकर काम खत्म कर दिया गया। जो हालात परियोजना शुरू होने से पहले थे। वही आज भी बने हुए हैं। परियोजना में ढिलाई के चलते बाछेपारा गांव के करीब 125 घर कट गए। गांव को क्षेत्र से जोड़ने वाली मुख्य सड़क भी कट गई। बाछेपारा का वजूद खत्म करने के बाद अब घाघरा नदी बिंजहा गांव की तरफ तेज़ी से बढ़ रही है।

धौरहरा तहसील के घोसियाना, गुलरिया तालुके अमेठी और अग्घरा गांव में कटान रोकने के लिए 9 करोड़ 93 लाख रुपयों की लागत से यहां भी एक परियोजना शुरू की गई। यहां शिलान्यास का पत्थर लाकर लगा दिया गया। जिसके बाद कोई काम यहां हुआ भी हो ऐसा नहीं दिखता। बरसात से पहले रामनगर बगहा समेत अग्घरा और गुलरिया के लोग सिस्टम के खेल से निराश होने के बाद अपने बचाव के रास्ते खुद तलाश कर रहे हैं। पिछले साल हुए कटान में रामनगर बगहा के दर्जनों घर नदी में कट गए थे। कटान प्रभावित परिवार अपने घरों को तोड़कर पलायन को मजबूर हो गए थे। धौरहरा तहसील क्षेत्र का एक बड़ा हिस्सा बाढ़ और कटान प्रभावित है। यहां बना तटबंध तो पहले से ही अधूरा है। ऊपर से बीच-बीच में बाढ़ व कटान से बचाव के नाम पर करोड़ों रुपयों की परियोजनाएं हर साल बनती तो जरूर हैं। पर उनसे फायदा कुछ नहीं होता। प्रभावित गांवों के लोग इसे सरकारी धन की बर्बादी करार देते हैं। एसडीएम धौरहरा रेनू का कहना है कि बाढ़-कटान रोकने के लिए परियोजनाएं चल रही हैं। कई बार नदियों की धार बदल जाती है। वे नई जगह से कटान करती हैं तो दिक्कत आती है। पर कोई परियोजना खत्म नहीं हुई है। काम जारी रहेगा।a