जैसे मोदी को गुजरात में घेरने की मुहिम चली थी वैसा ही अभियान योगी के खिलाफ चलाया जा रहा

 महामारी ने हमारी स्वास्थ्य सेवाओं की पोल खोकर रख दी तो इस बात के भी संकेत दे दिए कि देश पर चाहे जितना भी बड़ा संकट या आपदा क्यों न आए, कुछ भ्रष्टाचारियों, रिश्वतखोरों और कालाबाजारी करने वालों की सेहत पर इसका कोई असर नहीं पड़ता है।

 योगी सरकार के 'आंख-कान-नाक’ इस समय इसी में लगे हैं कि किस तरह से जानेलवा कोरोना महामारी पर विजय प्राप्त की जा सके। किसी भी सरकार के लिए इतने लम्बे समय तक महामारी से मुकाबला करना आसान नहीं होता है। पिछले साल-डेढ़ साल में कोरोना ने समाज और अर्थव्यवस्था का काफी नुकसान पहुंचाया है। भले ही समय के साथ कोरोना के ‘जख्मों’ की पीड़ा कुछ कम हो जाए, लेकिन जिन्होंने इस महामारी में अपनों को खोया है, उनके लिए तो कोरोना की कड़वी यादों को भुलाना असंभव ही होगा। न जानें कितनी जिंदगियां तबाह हो गईं ? कितनों के घर उजड गए। सरकार भरसक प्रयास कर रही है कि जल्द से जल्द स्थितियां सामान्य हो जाएं। कोरोना ऐसी महामारी है जिस पर पार पाना किसी भी सरकार के लिए आसान नहीं है।
 देश पर चाहे जितना भी बड़ा संकट या आपदा क्यों न आए, कुछ भ्रष्टाचारियों, रिश्वतखोरों और कालाबाजारी करने वालों की सेहत पर इसका कोई असर नहीं पड़ता है। संकट की इस घड़ी में जब सरकार से लेकर विभिन्न क्षेत्रों के तमाम छोटे-बड़े लोग महामारी का मुकाबला करने के लिए कंधे से कंधा मिलाकर समाज और सरकार को पूरा सहयोग दे रहे है, तभी कुछ लोग इसमें भी पैसा कमाने और मौका तलाशने में जुटे हैं। ऐसे लोगों पर सरकार शिकंजा कस रही है। अनेक लोग पकड़े भी जा चुके हैं, लेकिन उन लोगों का क्या जिन्हें आपदा की इस घड़ी में भी अपनी राजनीति चमकाने की चिंता है। आखिर जब जनता कोरोना महामारी से त्राहिमाम कर रही हो तब कोई नेता इसको अपनी सियासत चमकाने का मौका कैसे बना सकता है। अब तो बात यहां तक चलने लगी है कि पश्चिम बंगाल की कहानी यूपी में दोहराई जाएगी। यह बयान किसी साधारण नेता का नहीं पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का है, जिन्हें लगता है कि बंगाल में बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा है। जबकि हकीकत यह है कि बीजेपी बंगाल में 03 सीटों से 77 सीटों पर पहुंच कर वहां मुख्य विपक्षी दल बन गई है। यदि यूपी में भी बंगाल जैसे नतीजे आए तो यहां तो बीजेपी को अबकी से चार सौ के पास पहुंच जाना चाहिए। यह हम नहीं सपा प्रमुख अखिलेश यादव का चुनावी गणित बता रहा है।
 अखिलेश यादव हों या कांग्रेस का गांधी परिवार और उसके आगे-पीछे घूमने वाली ‘मंडली’ के लोगों को अगर लगता है योगी सरकार को ‘बदनाम’ करके वह 2022 के विधान सभा चुनाव जीत सकते हैं तो यह उनकी गलतफहमी है। आज जैसी कोशिशें योगी को बदनाम किए जाने की चल रही हैं, वैसी साजिशें गुजरात के मुख्यमंत्री रहते नरेन्द्र मोदी के खिलाफ कांग्रेस द्वारा करीब दो दशक तक मुहिम की तरह चलाई गई थीं, जिसका नेतृत्व तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी कर रही थीं, पंरतु नतीजा क्या रहा। कांग्रेस गुजरात की सत्ता से तो मोदी को हटा ही नहीं पाई, उलटे मोदी प्रधानमंत्री की कुर्सी पर विराजमान हो गए और कांग्रेस मोदी-मोदी करते हुए रसातल में पहुंच गई है। कुछ ऐसी ही परिस्थितियां यूपी में पैदा की जा रही हैं।
 सत्ता में न रहने के बावजूद अखिलेश जनप्रतिनिधि तो हैं ही, इस हैसियत से उन्हें जनता को बरगलाने की जगह समझाने का काम करना चाहिए था। शायद ही कोई दिन ऐसा जाता होगा जब अखिलेश सोशल मीडिया के माध्यम से बीजेपी और मोदी-योगी सरकार को खरी खोटी नहीं सुनाते हों। वह कोरोना पर राजनीति करते हैं, वैक्सीन पर सवाल उठाते हैं। ऑक्सीजन और दवाओं की कमी पर सरकार को घेरते हैं। मगर अपने आप से नहीं पूछते हैं कि वह योगी की तरह घर से बाहर निकलकर जनता के दुख-दर्द को बांटने का काम क्यों नहीं करते हैं। अखिलेश यादव के पिछले कुछ महीनों का कार्यक्रम देख लिया जाए तो यह समझने में देरी नहीं लगेगी कि अखिलेश एक-दो मौकों का छोड़कर घर से बाहर निकले ही नहीं हैं। निकले भी होंगे तो कभी पंचायत चुनाव में वोट डालने या फिर पारिवारिक कारणों से।
हाल में सम्पन्न हुए पंचायत चुनाव की तो भले ही समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव नतीजों को लेकर जनता के सामने अपनी पीठ थपथपा रहे हों, परंतु 2021 पंचायत चुनाव के नतीजे समाजवादी पार्टी के लिए किसी ‘आईने’ से कम नहीं हैं। समाजवादी पार्टी 2016 के पंचायत चुनाव तक का आंकड़ा नहीं छू पाई है। ऐसा नहीं है कि कोरोना महामारी के चलते योगी सरकार की लोकप्रियता का ग्राफ गिरा है बल्कि योगी की प्रयासों की तरीफ हो रही है। यह तारीफ बीजेपी नहीं अन्य राज्यों की हाईकोर्ट कर रहे हैं। विदेशों तक में योगी के काम करने के तरीके की चर्चा है, लोग योगी के महामारी से निपटने के तौर-तरीके से काफी खुश हैं। कोरोना को नियंत्रित करने के लिए योगी सरकार द्वारा लिए गए निर्णयों से प्रभावित होकर अन्य राज्यों की सरकारें भी उस पर अमल कर रही हैं, इसमें कुछ कांग्रेस की राज्य सरकारें भी हैं।
सपा-कांग्रेस की यही हठधर्मी एक बार फिर उन्हें हाशिये पर नहीं ढकेल दें क्योंकि जनता सब जानती है। उसे बेवकूफ नहीं बनाया जा सकता है।