पंचायत चुनाव में मुर्गे की डबल सेंचुरी, मिला रहा फ्री होम डिलिवरी का तोहफा, पढ़ें पूरा माजरा

उत्तर प्रदेश के गांवों में पंचायत चुनाव की हलचल तेज हो गई है. वोटर्स को लुभाने के लिए चिकन पार्टी का सहारा लिया जा रहा है जिससे मुर्गों के दाम काफी बढ़ गए हैं.

 

उत्तर प्रदेश के गांवों में आजकल चुनावी बयार बह रही है. हर प्रत्याशी वोटर को लुभाने में जुटा है.  कोई वोटर को मुर्गा पार्टी करा रहा है तो कोई किसी दूसरे तरीके से मतदाता का ध्यान आकर्षित कर रहा है. वोटर की मुर्गा पार्टी का नतीजा ये है कि पिछले दस दिन में चिकन की कीमतें दोगुनी हो गई है. कह सकते है कि पंचायत चुनाव की वजह से मुर्गे ने डबल सेंचुरी लगा दी है. और तो और अब गांव-गांव मुर्गे की होम डिलीवरी भी हो रही है. इस पंचायत चुनाव में मुर्गे के नखरे भी बढ़ गए है. जब से पंचायत चुनाव की घोषणा हुई है मुर्गे की कीमतों में दोगुने का इजाफा हुआ है. दस दिन पहले जो मुर्गा 120 या 140 तक बिक रहा था. आज उसकी कीमत 240 से 250 रुपए प्रति किलो तक हो गई है.

दुकानदार मुर्गे की बढ़ी हुई कीमतों से काफी खुश हैं. दुकानदारों का कहना है कि एक समय में बर्ड फ्लू कीअफवाह की वजह से उन्हें खासा नुकसान हुआ था. लेकिन अब पंचायत चुनाव उसकी कमी पूरी कर रहे हैं. क्योंकि जब से गांव की सरकार बनने का एलान हुआ है मुर्गे का रेट दोगुना हो गया है. आलम ये है कि आज की तारीख में गांव गांव से मुर्गे की इतनी डिमांड है कि पूरा करना मुश्किल हो रहा है
मिल रही  फ्री होम डिलीवरी की भी सुविधा

पंचायत चुनाव में जुटे प्रत्याशी वोटरों को रिझाने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं. लिहाज़ा आजकल शाम ढलते ही पार्टियां शुरू हो जाती हैं.ख़ासतौर से रोजाना चिकन की पार्टी हो रही है. गांव-गांव में चिकन की मांग बढ़ने के साथ ही मुर्गे की कीमत भी बढ़ती  जा रही है. आलम ये है कि हर रोज मुर्गे की कीमत पांच रुपए से लेकर 15 रुपए तक बढ़ रही है. मुर्गे की आजकल कितनी डिमांड है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अब गांव-गांव में मुर्गे की फ्री होम डिलीवरी भी दुकानदार खुशी खुशी कर रहे हैं. हालांकि प्रत्याशियों से जब ये पूछा गया कि इस बार गांव की सरकार को लेकर कौन से मुद्दे हैं. तो वो विकास की बात करते हैं. लेकिन अंदर ही अंदर सभी पार्टियों के भरोसे चुनावी जीत का गणित लगा रहे हैं.
यकीनन चिकन की कीमतें बढ़ने से शहरवासियों के चेहरे पर शिकन दिखाई दे रही है. लेकिन गांव के लोगों की आजकल बल्ले बल्ले है. हो भी क्यों न जिन्हें पांच साल तक नेता मुंह घुमाकर भी नहीं देखते. आज उनके घर पर मुर्गा लेकर पहुंच रहे हैं. हालांकि वोटर भी होशियार हैं. वो किसका मुर्गा खा ले और किसे वोट दे दे कोई नहीं जानता. क्योंकि ये पब्लिक है ये नेता की सारी दरियादिली से भली भांति परिचित है. यही तो है गांव की सरकार का चटख रंग.