इस गांव में बिच्छुओं संग खेली जाती है होली, वर्षों पुरानी पंरपरा आज भी है जिंदा

 

वर्षों पुरानी यह हैरतअंगेज पंरपरा सौंधना गांव मे आज भी जिंदा है. ऊसराहार क्षेत्र के सोंथना गांव में होली की पूर्णिमा के अगले दिन जब ढोलक की थाप के साथ गायन होता है तो प्राचीन मंदिर के अवशेषों से सैंकड़ों की संख्या में बिच्छू निकलते हैं.

इटावा. रंगों के पर्व होली का देश ही नहीं विदेशों में भी धूम रहती है. रंगोत्सव हर जगह अलग-अलग ढंग से मनाया जाता है, लेकिन कुछ जगहों की होली वाकई में हैरान करने वाली होती है. उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के ऊसराहार इलाके के एक गांव मे बिच्छुओं के साथ खेलने की परंपरा है. वर्षों पुरानी यह हैरतअंगेज पंरपरा सौंधना गांव में आज भी जिंदा है. ऊसराहार क्षेत्र के सोंथना गांव में होली की पूर्णिमा के अगले दिन जब ढोलक की थाप के साथ गायन होता है तो प्राचीन मंदिर के अवशेषों से सैंकड़ों की संख्या में बिच्छू निकलते हैं. आश्चर्य की बात यह है कि गांव के छोटे बच्चे भी इन्हें हथेलियों पर लेकर नाचते हैं. इस दिन बिच्छू भी अपना जहरीला स्वभाव छोड़कर अबीर गुलाल संग होली खेलते हैं.

विकास खंड ताखा क्षेत्र के गांव सोंथना में प्राचीन भैंसान देवी का टीला है. यहां मंदिर के अवशेष पड़े हुए हैं होली के समय में पूर्णिमा के अगले दिन जब गांव के सभी लोग इस टीले पर एकत्रित होकर फाग गाते हैं. फाग गायन के समय में जब ढोलक की थाप लगती है तो पत्थरों के नीचे से सैंकड़ों की संख्या में बिच्छू निकल आते हैं, लेकिन इस दिन पर कोई इनसे डरता नहीं, बल्कि हाथों में लेकर अबीर गुलाल खेलते हैं.

सैकड़ों वर्ष पुरानी है परंपरा
इस बारे में गांव के कृष्ण प्रताप भदौरिया कहते हैं कि यह सैंकड़ों वर्ष पुरानी परंपरा है. बिच्छू अपना स्वभाव छोड़कर इस दिन किसी को नहीं काटते हैं. इसे देखने के लिए आसपास के गांवों की भीड़ जमा होती रहती है. गांव के निवर्तमान प्रधान उमाकांत बताते हैं कि यह अपने आप में आश्चर्यजनक घटना है, लेकिन गांव के लोगों के लिए यह आम बात हो चुकी है. यह अपने तरीके का अलग ही मामला है. वैसे तो सामान्यता ऐसा माना जाता है कि बिच्छु का जहर बहुत ही प्रभावी होता है. हर कोई उससे दूर रहने की ही कोशिश करता है, लेकिन होली के मौके पर यहां के लोगों के हाथों में बिच्छुओं को देखना हैरत करने वाला है.