आज की सियासत में सत्तापक्ष और विपक्ष की राजनीतिक सोच में जमीन-आसमान का अंतर होना स्वाभाविक है, लेकिन बात जब योगी के केन्द्र से रिश्तों की कि जाए तो यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि यूपी में ‘डंबल इंजन’ की सरकार मजबूती के साथ चल रही है।
खैर, आज की सियासत में सत्तापक्ष और विपक्ष की राजनीतिक सोच में जमीन-आसमान का अंतर होना स्वाभाविक है, लेकिन बात जब योगी के केन्द्र से रिश्तों की कि जाए तो यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि यूपी में ‘डंबल इंजन’ की सरकार मजबूती के साथ चल रही है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ यूपी में मोदी का ‘अश्क’ बनकर काम कर रहे हैं। दिल्ली में जो मोदी बोलते या करते हैं, योगी उसे यूपी में ज्यों के त्यों उतार देते हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि योगी ‘रबर स्टाम्प’ मुख्यमंत्री बने हुए हैं। इसीलिए जहां केन्द्र की मोदी सरकार कट्टर हिन्दुत्व वाली छवि से बचते हुए अपनी सरकार चलाती है, वहीं योगी का एजेंडा हिन्दुत्व की ‘धार’ पर चलता है। योगी प्रखर हिन्दुत्व का ‘नया चेहरा’ बन गए हैं। हिन्दुत्व के मामले में उन्होंने काफी हद तक मोदी और अमित शाह तक को पीछे छोड़ दिया है। इसीलिए जब किसी राज्य के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी आलाकमान हिन्दुत्व को भुनाने का दांव चलता है तो उसे अमली जामा पहनाने के लिए योगी ही याद आते हैं। इसीलिए अन्य प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों से इतर योगी को जिस राज्य में भी चुनाव होता है, वहां स्टार प्रचारक बनाकर भेजा जाता है। आज की स्थिति यह है कि भारतीय जनता पार्टी में योगी का कद काफी बढ़ गया हैं।
अतीत के पन्नों को पलटा जाए तो यह सच है कि आज से चार वर्ष पूर्व 2017 विधान सभा चुनाव के बाद भले ही योगी आदित्यनाथ ‘इत्तेफाक’ से मुख्यमंत्री बने हों लेकिन अब योगी की गणना देश के श्रेष्ठ मुख्यमंत्रियों में होती है, जिसका अहसास योगी आदित्यनाथ को भी है। इसीलिए योगी कई बार केन्द्र की बात भी नहीं मानते हैं। इसका ताजा उदाहरण तब देखने को मिला जब योगी ने गुजरात से आए मोदी के एक खास सिपहसालार और पूर्व आईएएस अरविंद शर्मा को प्रदेश की सियासत में चमकने का मौका नहीं दिया, जबकि अरविंद शुक्ला को गुजरात से यूपी बुलाकर इसीलिए एमएलसी बनाया गया था ताकि वह बीजेपी के मिशन 2022 (विधानसभा चुनाव) में ‘चार चांद’ लगा सकें। जनवरी में जब अरविंद को यहां लाया गया था तब यहां तक चर्चा छिड़ी थी कि उनको उप-मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है या फिर योगी से गृह विभाग लेकर उन्हें (अरविंद शर्मा) सौंपा जा सकता है। तब यहां तक कहा गया था कि यूपी की बेलगाम नौकरशाही लॉबी पर योगी का उतना नियंत्रण नहीं हैं, जितना होना चाहिए। अरविंद पूर्व नौकरशाह हैं वह ब्यूरोक्रेसी की नब्ज जानते हैं और उसे कंट्रोल रखने में सक्षम रहेंगे और विकास कार्यों पर बारीकी से नजर बनाए रखेंगे, लेकिन योगी को यह बात पसंद नहीं आई कि यूपी में सत्ता का एक नया केन्द्र बन जाए। पहले से ही वह सत्ता के दो केन्द्र (उप-मुख्यमंत्री दिनेश शर्मा एवं केशव प्रसाद मौर्या) बने होने से प्रसन्न नहीं हैं।
गौरतलब है कि यूपी में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अरविंद को ‘मिशन यूपी’ के लिए अपने एक खास सिपहसालार की तरह भेजा था। पूर्व नौकरशाह अरविंद शर्मा को मोदी की ‘तीसरी आंख’ कहा जाता है। अरविंद तब से मोदी के साथ काम कर रहे हैं जब वो गुजरात के मुख्यमंत्री थे। मोदी जब दिल्ली आए तो अरविंद भी पीएमओ में आ गए। अरविंद शर्मा मूल रूप से उत्तर प्रदेश के मऊ से ताल्लुक रखते हैं। अरविंद शर्मा गुजरात कैडर के आईएएस हैं। शुरुआती पोस्टिंग के बाद अरविंद शर्मा को गुजरात के विभिन्न सरकारी विभागों में एडिशनल कमिश्नर से लेकर डीएम, एसडीएम, डायरेक्टर तक पोस्ट मिली थी। अरविंद अपने काम और व्यवहार के लिए जाने जाते थे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ उनके संबंधों की शुरूआत 2004 में हुई जब उन्हें मुख्यमंत्री सचिवालय बुलाकर सचिव बना दिया गया और बाद में प्रधान सचिव बनकर वो मुख्यमंत्री कार्यालय आ गए। इसके बाद जहां-जहां मोदी गए वहां-वहां शर्मा भी साथ रहे। गुजरात में रहने के दौरान अरविंद शर्मा ने पीएम मोदी की कई महत्वाकांक्षी परियोजनाओं को सफलतापूर्वक जमीन पर उतारा। जिसकी वजह से गुजरात में टाटा नैनो प्लांट लगाए जाने का रास्ता साफ हो पाया। फिर वाइब्रेंट गुजरात जैसे कार्यक्रम भी चले। ऐसे समय में जब अमेरिका ने नरेंद्र मोदी के वहां आने पर रोक लगा रखी थी, अरविंद शर्मा ही वो शख्स थे जो 2014 में अमेरिकी राजदूत नैन्सी पावेल को गांधीनगर लेकर आए थे। शर्मा के बारे में यहां तक कहा जाता है कि जब-जब पीएम मोदी के लिए संकट पैदा हुआ तो अरविंद ने संकटमोचक की भूमिका अदा की।
बात 2014 की है। जब लोकसभा चुनाव के बाद तय हुआ कि नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बन रहे हैं तो अगले दिन ही उन्होंने अरविंद शर्मा को फोन कर कहा कि आपको मेरे साथ दिल्ली चलना है। पीएम के रूप में शपथ लेने के चार दिन बाद अरविंद शर्मा को पीएमओ में नियुक्ति पत्र मिल गया था। उन्होंने संयुक्त सचिव के रूप में कार्यभार ग्रहण कर लिया। बाद में उन्हें अतिरिक्त सचिव बनाया गया और कोरोना के दौर में लघु और मध्यम उद्योगों पर पड़ी मार के बाद पीएम ने उन्हें इस मंत्रालय में भेजकर सचिव बना दिया। जनवरी में उत्तर प्रदेश विधान परिषद चुनाव में अरविंद को चुनाव जिता कर यूपी की सियासत में स्थापित करने का प्रयास शुरू हो गया। इसके पीछे मोदी गुट का ही दिमाग काम कर रहा था। कहा यह गया कि अरविंद शर्मा उन ब्राह्मण वोटरों को बीजेपी के पक्ष में लाने की कोशिश करेंगे जो यह मानकर चल रहे हैं कि योगी जी प्रदेश में क्षत्रिय लॉबी का प्रतिनिधित्व करते हैं। लेकिन योगी ने कोई तर्क नहीं चलने दिया और पूर्व नौकरशाह को प्रदेश की सियासत में नहीं उभरने दिया।