चीन करेगा मौसम को मैनेज, भारत के लिए क्यों चिंता की बात?

 भारत-चीन तनाव के बीच इस बात की आशंका जताई जा रही है कि मौसम में परिवर्तन की तकनीक का चीन कोई गलत इस्तेमाल न करने लगे। इसके साथ ही इसके काफी दूर तक प्रभाव होने की वजह से चीन के अपने इलाके में बदलाव की कोशिशों का असर भारत में भी पड़ सकता है और मौसम ज्यादा विपरित हो जाए।

अगर मैं आपसे कहूं कि आसमान में जिन बादलों को आप देखते हैं वो सभी के सभी बरसते नहीं? तो आप चौकेंगे क्या? आप चौकेंगे कि जब मैं आपको बताऊं कि वैज्ञानिकों के पास ऐसी तकनीक है जिससे वे बादल को भी बरसने पर मजबूर कर दें। आप चौकेंगे क्या अगर मैं आपसे कहूं की चीन मौसम को मैनेज करने की प्रक्रिया में लगा है। तकनीक के सहारे ऐसे हालात पैदा कर दे कि भारत के कई हिस्से सूखाग्रस्त हो जाएं। आप कहेंगे, कमबख्त, हर जगह घुसा चला आता है और कुछ न कुछ करता ही रहता है। आज हम बात करेंगे क्लाउड सीडिंग यानी आर्टिफिशल रेनिंग की। साथ ही आपको बताएंगे की चीन की कृत्रिम बारिश कराने की तैयारी और ये क्यों भारत के लिए चिंतित होने की बात है। सबसे पहले आपको क्लाउड सीडिंग यानी आर्टिफिशल रेनिंग के बारे में बताते हैं।

अगर आप बोल चाल की भाषा में बताएं तो ऐसा समझिए की घर में मां ने खाने में हरी सब्जी बनाई और आपको ये खाने का मन न हो। लेकिन आपकी मां ने डाटंकर आपको सब्जी खाने पर मजबूर कर दिया। इसी तरह से आर्टिफिशल रेनिंग से बादलों को बरसने पर मजबूर किया जाता है। क्लाउड सीडिंग एक ऐसी तकनीक है जिसके जरिए बादलों की भौतिक अवस्था में कृत्रिम तरीके से बदलाव लाया जाता है। ऐसी स्थिति पैदा की जाती है जिससे वातावरण बारिश के अनुकूल बने। इसके जरिये भाप को वर्षा में बदला जाता है। इस प्रक्रिया में सिल्वर आयोडाइड और सूखे बर्फ को बादलों पर फेंका जाता है। यह काम एयरक्राफ्ट या आर्टिलरी गन के जरिए होता है। लेकिन क्लाउड सीडिंग के लिए बादल का होना जरूरी होता है। बिना बादल के क्लाउड सीडिंग संभव नहीं है। वाई जहाज से सिल्वर आयोडाइड को बादलों के बहाव के साथ फैला दिया जाता है। विमान में सिल्वर आयोइड के दो बर्नर या जनरेटर लगे होते हैं, जिनमें सिल्वर आयोडाइड का घोल हाई प्रेशर पर भरा होता है। जहां बारिश करानी होती है, वहां पर हवाई जहाज हवा की उल्टी दिशा में छिड़काव किया जाता है। इस प्रोसेस में बादल हवा से नमी सोखकर और कंडेस होकर बारिश की भारी बूंदे बनने लगती हैं और बरसने लगती हैं। 


सबसे पहले कब हुआ इस्तेमाल

इस थ्योरी को सबसे पहले जनरल इलेक्टि्क के विंसेट शेफर और नोबल पुरस्कार विजेता इरविंग लेंगमुइर ने कंफर्म किया था। जुलाई 1946 में क्लाउड सिडिंग का सिद्धांत शेफर ने खोजा। 13 नवंबर 1946 को क्लाउड सीडिंग के जरिए ही पहली बार न्यूयॉर्क फ्लाइट के जरिए प्राकृतिक बादलों को बदलने का प्रयाक हुआ। जिसके बाद जनरल इलेक्ट्रिक लैब द्वारा फरवरी 1947 में बाथुर्स्ट ऑस्ट्रेलिया में किया गया। जिसके बाद तमाम देशों ने इसे इस्तेमाल किया। 

56 देश कर चुके इस्तेमाल

विश्व मौसम संगठन के अनुसार 56 देश कृत्रिम बारिश का इस्तेमाल कर चुके हैं। इसमें संयुक्त अरब अमीरात से लेकर चीन चक शामिल है। यूएई ने जहां पानी की कमी दूर करने के लिए इसका इस्तेमाल किया वहीं चीन ने 2008 में बीजिंग ओलंपिक के दौरान बारिश रोकने और आसमान खुला रखने के लिए इस तकनीक का इस्तेमाल किया। इसके लिए चीन ने ओलंपिक शुरू होने के पहले आसमान में 1000 से ज्यादा रॉकेट दागे ताकि सारी बारिश पहले ही हो जाए। यूएस में स्की रिसोर्ट के जरिए क्लाउड सीडिंग का इस्तेमाल स्नोफॉाल के लिए भी किया जाता है। 


चीन करेगा मौसम को मैनेज

चीन की योजना 2025 तक देश के 55 लाख वर्गकिमी इलाके को कृत्रिम बारिश या बर्फ के प्रोग्राम के तरत कवर करने की है। यह चीन के कुल क्षेत्रफल का करीब 60 फीसदी है और भारत के आकार का डेढ़ गुना अधिक। चीन बारिश और बर्फ बनाने में कितना सफल होगा यह बहस का विषय है। इस वर्ष की शुरुआत में, यूएस नेशनल साइंस फाउंडेशन द्वारा वित्त पोषित एक अध्ययन में पाया गया था: "यदि वायुमंडलीय परिस्थितियां अनुकूल हैं तो क्लाउड सीडिंग व्यापक क्षेत्र में बर्फबारी को बढ़ावा दे सकती है। हालाँकि, वर्तमान तकनीक बिल्कुल सरल या लागत प्रभावी नहीं है। 

भारत के लिए क्यों चिंता की बात

भारत-चीन तनाव के बीच इस बात की आशंका जताई जा रही है कि मौसम में परिवर्तन की तकनीक का चीन कोई गलत इस्तेमाल न करने लगे। इसके साथ ही इसके काफी दूर तक प्रभाव होने की वजह से चीन के अपने इलाके में बदलाव की कोशिशों का असर भारत में भी पड़ सकता है और मौसम ज्यादा विपरित हो जाए। उदाहरण के तौर पर चीन अपने यहां बारिश रोकने के लिए मौसम में छेड़छाड़ कर उसे कम करने की कोशिश करे और इसका असर भारत के उन इलाकों तक चला जाए जहां पहले से ही कम बारिश होती है। तो यहां सूखा पड़ने की संभावना है। नेशनल ताइवान यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने तो यहां तक अनुमान लगा लिया कि कहीं चीन के इस विवादित प्रोजेक्ट से पड़ोसी देशों से बारिश की चोरी करने लगे और दूसरे देशों को सूखाग्रस्त बनाने लगे। इस तकनीक का असर गर्मियों में भारत में आने वाले मॉनसून पर भी पड़ेगा। यह मॉनसून इस पूरे इलाके के लिए बेहद अहम होता है।


पानी की कमी अब दुनिया भर के 3 बिलियन से अधिक लोगों को प्रभावित करती है। लगभग 1.5 बिलियन लोग गंभीर जल संकट से जूझ रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि, 2030 तक, पानी की कमी से 700 मिलियन लोग प्रभावित हो गए होंगे। और अगर वे सभी आंकड़े आपको चिंतित नहीं करते हैं, तो यह तथ्य कि निवेशकों ने पानी की कमी को गंभीरता से लेना शुरू कर दिया है।  सितंबर 2020 में यूएस की वॉल स्ट्रीट द्वारा राज्य में पानी की सप्लाई को लेकर वायदा कारोबार शुरू किया गया।  ज़ाहिर है, दुनिया के सामने आने वाले कई जलवायु-संबंधी मुद्दों का सिर्फ एक हिस्सा है। 

इस तकनीक को लेकर उठने वाले सवालों से बेपरवाह चीन ने इस पर भारी निवेश किया है। इसके चलते बढ़ते भूराजनैतिक विवादों के बीच चीन के पड़ोसी देशों में चिंताएं भी पैदा हो रही है।