कोरोना काल में दो भाई-बहनों ने लिखी दी 2100 से ज्‍यादा पन्‍नों की रामायण

 

जालौर। वैश्विक महामारी कोरोना काल में लोगों ने घरों में बंद रहने के दौरान टेलीविजन पर रामायण एवं अन्य कार्यक्रम खूब देखे लेकिन राजस्थान के जालौर में एक शिक्षक के तीसरी और चौथी कक्षा में पढ़ने वाले दो बच्चों ने कोरोना को अवसर के रुप में लेते हुए इक्कीस सौ से अधिक पृष्ठों में संपूर्ण रामायण लिख दी। जालौर के आदर्श विद्या मंदिर विद्यालय के चौथी कक्षा में पढ़ने वाले माधव एवं उसकी बहन तीसरी कक्षा की अर्चना  ने उनके पिता जालौर जिले के रेवत स्थित राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय में शिक्षक संदीप जोशी के प्रोत्साहन के कारण कोरोना काल में पिछले आठ महीनों में यह कामयाबी हासिल की। 
 
लॉकडाउन एवं कोरोना काल के दौरान नन्हें भाई बहनों की इस जोड़ी ने 2100 से  अधिक पृष्ठों की संपूर्ण रामायण लिखकर सबको चौंका दिया वहीं ये दोनों बच्चे  अन्य बच्चों के लिए प्रेरणादायक भी बन गये। दोनों ने कोरोना की अवधि में  पूरी रामायण खुद कलम और पेंसिल से लिखी। इसके लिए उन्होंने 20 कॉपियों का  इस्तेमाल किया। दोनों बच्चों ने बताया कि रामायण लिखने का काम सात  हिस्सों में पूरा किया गया। माधव ने 14 कॉपियों में बालकांड, अयोध्याकांड,  अरण्यकांड और उत्तरकांड लिखा है वहीं अर्चना ने छह कॉपियों में किंष्किंधा कांड, सुंदर कांड और लंका कांड को लिखा है। माधव ने बताया कि दूरदर्शन  पर प्रसारित रामायण देख कर रामायण पढ़ने की इच्छा हुई। पहले परिवार के साथ  और बाद में दोनों भाई बहन ने श्रीरामचरितमानस का तीन बार पठन किया। 
 
इन बच्चों के पिता संदीप जोशी ने बताया कि बच्चों ने कोरोना काल में दूरदर्शन पर रामायण देखने की इच्छा के चलते उन्हें कोरोना काल को अवसर के रुप में लेते हुए दोनों बच्चों की  रुचि के मद्देनजर उन्हें रामायण लिखने के लिए प्रोत्साहित किया गया और दोनों ने  मिलकर यह कामयाबी हासिल की। 
 
उन्होंने कहा कि कोरोना काल की लंबी अविध ऑनलाइन पढ़ाई के चक्कर में मोबाइल और लैपटॉप पर लगातार देखने से छोटे  बच्चों को नुकसान भी हो सकता है, यह सोचकर उन्होंने उनसे ऑनलाइन पढाई नहीं  कराकर उन्हें श्रीरामचरितमानस के पठन और लेखन का गृहकार्य दिया गया ताकि  बच्चों का पढ़ने और लिखने का स्वभाव बना रहे। बाकी ज्ञान तो विद्यालय  खुलने पर हो जायेगा। उन्होंने कहा कि बस पढ़ने का लिखने का स्वभाव छूटना नहीं चाहिए।
 
उन्होंने कहा कि एक बार सीखने का स्वभाव बनने के बाद कुछ भी सीखा जा सकता  है। उन्होंने कहा कि बच्चों के रामायण लिखने से उनके पढ़ने एवं लिखने का  स्वभाव बना। उनकी लेखनी में सुधार हुआ। इसके साथ ही उन्हें सांस्कृतिक धरोहर का ज्ञान भी हुआ। इससे दोनों को रामकथा समझ में आई और उन्हें यह याद  भी हो गई। 
 
उल्लेखनीय है कि जोशी ने बच्चों के बस्ते के बोझ को हल्का करने के लिए बस्ता मुक्त दिन एवं प्राथमिक स्कूल से ही विद्यार्थियों में विज्ञान के प्रति रुचि जगाने के लिए प्रयोगशाला शुरु की। देश प्रेम विकसित करने के लिए स्कूल में भारत दर्शन गलियारा बनाया और कन्या सुरक्षा एवं उनकी अहमियत दर्शाने के लिए कन्या पूजन कार्यक्रम शुरु किया गया। उनके इन प्रयासों को राजस्थान एवं मध्यप्रदेश के कई स्कूलों में लागू किया गया हैं। उन्होंने पिछले 15 वर्षों में 25 से अधिक शैक्षिक नवाचार किये हैं। उन्हें राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद का सदस्य भी बनाया गया।