टेलीविजन चैनल्स और प्रोग्राम की लोकप्रियता कुछ यूं मापती है टीआरपी

टीआरपी एक टूल होता है और इसके जरिए इलेक्ट्रॉनिक्स चैनल की रेटिंग मापी जाती है और यह कैलकुलेट किया जाता है कि टेलीविजन चैनलों पर चलने वाला कोई न्यूज़ अथवा सीरियल कितने लोगों द्वारा देखा जा रहा है।




आम जनमानस को इस टीआरपी यानी, टेलीविजन रेटिंग पॉइंट के बारे में सदैव से उत्सुकता रही है!


सच तो यह है कि आम तो आम, बल्कि खास लोगों को भी कई बार यह समझ में नहीं आता है कि मीडिया की टीआरपी वास्तव में चेक कैसे की जाती है। आप देखते होंगे कि तमाम टेलीविजन चैनल कभी नंबर वन होने का, तो कई नंबर दो होने का दावा करते हैं। लेकिन इस दावे का वास्तविक आधार क्या है। आखिर इलेक्ट्रॉनिक्स चैनल की टीआरपी चेक कैसे की जाती है?


इस बारे में आप की उत्सुकता यह लेख शांत करेगा, आइये देखते हैं।


पिछले कई दशकों से समाज में आये सबसे बड़े बदलावों में से एक रहा है टेलीविजन!


इस टीवी के जरिये देश भर के लोग समाचार, धारावाहिक, फिल्में इत्यादि देखते हैं। आज तो डीटीएच के माध्यम से देश के कोने-कोने तक फ़ैल चुका है। मनोरंजन चैनल्स के साथ देशवासियों की निगाह सर्वाधिक न्यूज चैनल्स पर टिकी होती है। वस्तुतः आज के समय इसे ही मेनस्ट्रीम मीडिया कहा जाता है।


सच कहा जाए तो, लोकतंत्र का प्रहरी होता है मीडिया और उसकी इस भूमिका ने लोकतंत्र की रक्षा सर्वदा ही की है। सरकार किसी भी नियम कानून को बनाती है और यह लोकतंत्र की सबसे ताकतवर संस्था भी है। उस सरकार पर नजर रखने के लिए देश में विपक्ष होता है और उससे भी जब अपनी भूमिका निभाने में चूक होती है, तब लोग अदालतों की ओर रुख करते हैं, किंतु मीडिया की भूमिका समस्त प्रक्रियाओं की निगरानी करना और उसकी जानकारी लोगों को लगातार देते रहना है, ताकि हर हाल में व्यक्ति अपडेट रहे और जब उसे तमाम जानकारियां और उसका विश्लेषण मिलता रहेगा, तो बहुत मुमकिन होता है कि लोकतंत्र में तमाम संकट आने से पहले ही समाप्त हो जायेंगे।


दुःख की बात यह है कि ऐसी मीडिया की भूमिका पर आजकल के समय में प्रश्न चिन्ह उठता है कि वह टीआरपी के लिए अपनी इस भूमिका के साथ न्याय नहीं कर पाती! तो वास्तव में टीआरपी है क्या और मीडिया चैनल्स अगर अपनी भूमिका नहीं निभा पा रहे हैं तो टीआरपी भला क्यों बदनाम होती है? आइये समझते हैं...


वस्तुतः टीआरपी एक टूल होता है और इसके जरिए इलेक्ट्रॉनिक्स चैनल की रेटिंग मापी जाती है और यह कैलकुलेट किया जाता है कि टेलीविजन चैनलों पर चलने वाला कोई न्यूज़ अथवा सीरियल कितने लोगों द्वारा देखा जा रहा है। इसमें ना केवल लोगों की संख्या, बल्कि समय भी निश्चित होता है कि कितने लोग, किसी चैनल को कितनी देर के लिए देख रहे हैं। कब वह चैनल चेंज करते हैं और कब उस चैनल पर वापस आते हैं इत्यादि। मतलब समस्त व्यूअरशिप की कैलकुलेशन ही इसके जरिए होती है।


इसकी और जानकारी ली जाए तो यह पीपल मीटर के इस्तेमाल के जरिए चेक किया जाता है। किसी खास जगह पर यह मीटर इंस्टॉल कर दिया जाता है जो किसी खास फ्रीक्वेंसी के माध्यम से यह कैलकुलेट करता है कि कौन सा चैनल कितनी बार और कितनी देर तक के लिए देखा जा रहा है। अधिकांशतः यह आपके सेट टॉप बॉक्स से ही जुड़ा होता है।


बता दें कि हमारे देश में इंडियन टेलिविजन ऑडियंस मेजरमेंट (India Television Audience Measurement- INTAM) नाम से एक एजेंसी है, जो टेलीविजन चैनल्स की टीआरपी बताती है। डिवाइस में लगे मीटर से निकली प्रत्येक मिनट की जानकारी मॉनिटरिंग टीम के जरिए इंडियन टेलीविजन ऑडियंस मेजरमेंट एजेंसी, अर्थात INTAM को भेजी जाती है। तत्पश्चात मिली जानकारी के बाद बनती है टेलीविजन रेटिंग पॉइंट, यानी टीआरपी (TRP) और पॉपुलर चैनलों के साथ साप्ताहिक अथवा मासिक टॉप 10 की लिस्ट तैयार होती है।


लब्बो-लुआब यह कि समस्त जिम्मेदारी इंडियन टेलीविजन ऑडियंस मेजरमेंट की होती है और यही एजेंसी, उपलब्ध डेटा के आधार पर निश्चित करती है कि कौन सा चैनल और उसका कौन सा प्रोग्राम कितनी देर के लिए देखा गया है और उसकी पॉपुलैरिटी का एग्जैक्ट कैलकुलेशन क्या है।


अब आप कहेंगे कि यह तो एक आंकड़ा भर है, लेकिन इसके कारण मीडिया पर यह आरोप क्यों लगाया जाता है कि मीडिया टीआरपी के लिए अपने सिद्धांतों से समझौता करती है या चैनल टीआरपी पर वही सीरियल दिखाते हैं जिससे समाज में कई बार ठीक संदेश नहीं जाता है? आखिर क्यों वह अपनी भूमिका के साथ न्याय नहीं कर पाते हैं, तो जान लीजिए कि टीआरपी से चैनल की कमाई का सीधा संबंध है!


कल्पना कीजिए कि किसी चैनल की टीआरपी अधिक है, उसकी व्यूअरशिप अधिक है तो जाहिर तौर पर उस चैनल पर जो भी विज्ञापन चलेगा, उसका पैसा उसे काफी ज्यादा मिलेगा, खासकर उनकी तुलना में जिस की टीआरपी कम है।


अब आप समझ गए होंगे कि टीआरपी का वास्तविक गेम क्या है और क्यों तमाम चैनल्स इसके पीछे पड़े रहते हैं।