रिपब्लिक टीवी के एडिटर अर्णब गोस्वामी को सुप्रीम कोर्ट से और तीन सप्ताह के लिए मिला संरक्षण, केस सीबीआई को ट्रांसफर करने से इनकार


रिपब्लिक टीवी के एडिटर अर्णब गोस्वामी को प्राप्त दंडात्मक कार्रवाई से संरक्षण को सुप्रीम कोर्ट ने तीन सप्ताह के लिए बढ़ा दिया है। हालांकि कोर्ट ने केस को सीबीआई को सौंपे जाने की उनकी मांग को खारिज कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने उनके खिलाफ दर्ज पहली एफआईआर को छोड़कर अन्य सभी को रद्द कर दिया है। कोर्ट ने यह भी कहा कि पत्रकारिता की आजादी बोलने और अभिव्यक्ति की आजादी का मूल आधार है।  


जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और एमआर शाह की बेंच ने गोस्वामी को शुरुआती प्राथमिकी निरस्त कराने के लिए कोर्ट ने उन्हें सक्षम अदालत जाने को कहा। पीठ ने प्रारंभिक प्राथमिकी, जो नागपुर में दर्ज हुई थी, के अलावा बाकी सभी प्राथमिकी रद्द करते हुए कहा कि पत्रकारिता की स्वतंत्रता अभिव्यक्ति और बोलने की आजादी का मूल आधार है। नागपुर में दर्ज प्राथमिकी शीर्ष अदालत ने अर्णब गोस्वामी पर कथित हमले की शिकायत के साथ संयुक्त जांच के लिए मुंबई स्थानांतरित कर दी थी। नागपुर के बाद अर्णब के खिलाफ देश के अलग-अलग हिस्सों में प्राथमिकी दर्ज कराई गई थी। 


पालघर में भीड़ द्वारा साधुओं की पीट-पीटकर हत्या के मामले पर एक समाचार शो में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के खिलाफ कथित अपमानजनक बयान को लेकर अर्णब के खिलाफ प्राथमिकियां दर्ज कराई गई हैं। शीर्ष अदालत ने 11 मई को निर्देश दिया था कि मुंबई पुलिस द्वारा दर्ज नई प्राथमिकी में गोस्वामी के खिलाफ कोई निरोधक कार्रवाई नहीं होनी चाहिए। शीर्ष अदालत ने उनकी दोनों याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रखा था।
 
गोस्वामी ने शीर्ष न्यायालय में दावा किया था कि मुंबई पुलिस ने कथित मानहानि वाले बयानों के संबंध में दर्ज प्राथमिकी के सिलसिले में उनसे 12 घंटे से अधिक समय तक पूछताछ की थी और उनके खिलाफ मामले में जांच कर रहे दो अधिकारियों में से एक को कोविड-19 के संक्रमण की पुष्टि हुई है।


महाराष्ट्र सरकार ने भी शीर्ष अदालत में आरोप लगाया कि गोस्वामी शीर्ष अदालत द्वारा प्राप्त संरक्षण का दुरुपयोग कर रहे हैं और पुलिस को धमका रहे हैं। गोस्वामी की ओर से वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने सुनवाई के दौरान दलील दी थी कि पूरा मामला एक राजनीतक दल द्वारा एक पत्रकार को निशाना बनाने का है क्योंकि शिकायती एक पार्टी विशेष के सदस्य हैं।