कभी CAA विरोध, कभी जमातियों की रक्षा: ब्यूरोक्रेट्स जो कुकुरमुत्ते की तरह उग आते हैं

जम्मू कश्मीर के आतंकियों को भी सालों तक 'भटका हुआ' बता कर उनका पोषण किया जाता रहा। अलगाववादी भी भटके हुए थे, उसी तरह अब महामारी फ़ैलाने वाले भी भटके हुए हैं। पूरे भारत में कोरोना वायरस के जितने मामले आए हैं, उनमें से अकेले 30% तबलीगी जमात से जुड़े हैं। क्या इसके लिए उन्हें दोष न दिया जाए?



101 पूर्व ब्यूरोक्रेट्स ने सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को पत्र लिख कर ‘मुस्लिमों के ख़िलाफ़ हो रहे अत्याचार’ पर अपना विरोध जताया है। उन्होंने आरोप लगाया है कि कोरोना वायरस की आपदा के बीच देश के कई क्षेत्रों में ‘मुस्लिमों पर हो रहे अत्याचार’ को लेकर विरोध जताया है। हालाँकि, उन्होंने ये भी कहा कि तबलीगी जमात ने दिल्ली में जो बैठक किया वो ‘गुमराह होने के कारण’ और निंदनीय है, लेकिन साथ ही कहा कि मीडिया में कुछ लोग मुस्लिमों को लेकर घृणा फैला रहे हैं, जो निंदनीय और दोषपूर्ण व्यवहार है।


क्या लिखा है  ब्यूरोक्रेट्स ने


उन्होंने दावा किया कि कोरोना वायरस रूपी आपदा से पूरा देश त्रस्त है और यहाँ डर एवं असुरक्षा का माहौल है, जिसे देश के विभिन्न हिस्सों में मुस्लिमों के ख़िलाफ़ अभियान चलाने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। आरोप लगाया गया है कि मुसलमानों को अलग कर के घृणा की नज़र से देखा जा रहा है, उन्हें सार्वजनिक जगहों से दूर रखा जा रहा है और ऐसा इसीलिए किया जा रहा है, ताकि कथित रूप से बाकी जनता को बचाया जा सके।


इन पूर्व अधिकारियों का आरोप है कि पूरा देश उस डर के माहौल से गुजर रहा है। साथ ही इसमें एकता से रहने जैसी बातें भी की गई हैं। हाँ, इन पूर्व नौकरशाहों ने ये बताना नहीं भूला कि वो किसी भी राजनीतिक विचारधारा से ताल्लुक नहीं रखते हैं और वो भारत के संविधान के प्रति आस्था रखते हुए ये पत्र लिख रहे हैं। जैसा कि आप देख सकते हैं, इस पत्र में जमात को निर्दोष, गुमराह और भटका हुआ साबित करने की कोशिश की गई है, जैसा आतंकवादियों के साथ किया जाता है।


जम्मू कश्मीर के आतंकियों को भी सालों तक ‘भटका हुआ’ बता कर उनका पोषण किया जाता रहा। अलगाववादी भी भटके हुए थे, उसी तरह अब महामारी फ़ैलाने वाले भी भटके हुए हैं। पूरे भारत में कोरोना वायरस के जितने मामले आए हैं, उनमें से अकेले 30% तबलीगी जमात से जुड़े हैं। क्या इसके लिए उन्हें दोष न दिया जाए? क्या इसके लिए जमात की पूजा की जाए? ये देश भर में विभिन्न इलाक़ों में जाकर छिप गए और वहाँ पुलिस पर हमले हुए। यानी, पहले महामारी और फिर पुलिस व स्वास्थ्यकर्मियों पर हमला।


इससे पहले भी कर चुके हैं ऐसे ‘कांड’


ये कुकुरमुत्तों का समूह है, जो ब्यूरोक्रेट्स के रूप में यदा-कदा प्रकट होकर मोदी सरकार को ही नहीं बल्कि पूरे देश को बदनाम करने में लगा हुआ है। 100 से भी अधिक ब्यूरोक्रेट्स ने तब भी पत्र लिखा था, जब सीएए के विरोध में आंदोलन भड़काया जा रहा था। इन ‘महान’ बुद्धिजीवियों ने तो यहाँ तक दावा कर दिया था कि देश को सीएए, एनआरसी और एनपीआर की ज़रूरत ही नहीं है। असम में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर एनआरसी हुआ, यानी ये ब्यूरोक्रेट्स सुप्रीम कोर्ट से भी ज्यादा समझदार हैं।


इन्होने एनपीआर का भी विरोध किया लेकिन जब यूपीए-2 के समय एनपीआर हुआ था, तब इन्होने कुछ नहीं कहा था। यानी, जब वही योजना मोदी सरकार के समय आई तो बुरी हो गई। अभी जिन ब्यूरोक्रेट्स ने चिट्ठी लिखी है, इनमें से कई पी चिदंबरम को आईएनएक्स मीडिया केस में बचाने में शामिल थे। दरअसल, उस मामले में कई अधिकारियों की भी संलिप्तता सामने आई थी। अक्टूबर 2019 में 71 रिटायर्ड ब्यूरोक्रेट्स ने पीएम नरेंद्र मोदी को पत्र लिख कर इस केस में अधिकारियों पर कार्रवाई किए जाने का विरोध किया था।


इन्होने आरोप लगाया था कि रिटायर्ड अधिकारियों को चुन-चुन कर निशाना बनाया जा रहा है। यूपीए के समय के कई भ्रष्टाचार के मामले ऐसे हैं, जिनकी अभी भी जाँच चल रही है। अधिकतर ब्यूरोक्रेट्स इस बात से डरे हुए हैं कि जाँच की आँच उन तक पहुँच सकती है और आईएनएक्स मीडिया केस हो या फिर अगस्ता-वेस्टलैंड हैलीकॉप्टर घोटाला, इन सब में उस समय के बड़े अधिकारियों की भूमिका की जाँच चल रही है ऐसे में, ये मोदी सरकार को दबाव में रखना चाहते हैं।


इन ब्यूरोक्रेट्स ने पालघर में साधुओं की भीड़ द्वारा निर्मम हत्या पर सवाल क्यों नहीं पूछे? इन रिटायर्ड नौकरशाहों ने सीएए विरोध की आड़ में दिल्ली में हुए हुए हिन्दुओं के नरसंहार के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई क्या?


इन नौकरशाहों ने शाहीन बाग़ के आतताइयों के ख़िलाफ़ भी कुछ नहीं बोला, जहाँ राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी और देश के संविधान को गाली देते हुए 3 महीने तक पूरी दिल्ली को एक तरह से बंधक बना कर रखा गया। आज यही ब्यूरोक्रेट्स संविधान की शपथ खाने की बात करते हैं। असल जड़ यही है कि आईएनएक्स केस जैसे मामलों में कई ब्यूरोक्रेट्स के भी हाथ रंगे हुए हैं, पी चिदंबरम के साथ। जब दलाल क्रिस्चियन मिशेल की मंत्रालयों में ऊँची पहुँच होने की बात पता चली है, तब से इनके कान खड़े हैं क्योंकि इनमें से कई तब इस खेल में शामिल रहे होंगे।


ये कुकुरमुत्ते हर अच्छे कार्य व अच्छी योजनाओं को बर्बाद करने के लिए उनके ऊपर ऐसे ही उग आते हैं। तबलीगी जमात के कारण देश के कई राज्यों में महामारी फैली है, जिसे ‘सिंगल सोर्स’ और ‘अंडर स्पेशल ऑपरेशन’ जैसे शब्दों के नीचे ढका गया। कई वीडियो सामने आए, जिसमें फल व सब्जी बेचने वाले महामारी फैलाने जैसा काम कर रहे थे। कई लोगों ने मुसलमानों से सामान लेना बंद कर दिया। इसमें मीडिया की क्या ग़लती? क्या ये ब्यूरोक्रेट्स थूक लगा फल या सब्जी खाएँगे?


ये उनसे अलग नहीं है। ऐसे ही सैकड़ों की संख्या में वैज्ञानिक, सामाजिक कार्यकर्ता और बुद्धिजीवी सामने आ जाते हैं और पत्र लिखते रहते हैं। कभी ‘अवॉर्ड वापसी’ का ढोंग रचा जाता है तो कभी राफेल का राग अलापा जाता है।


उत्तर प्रदेश में हमने देखा है कि कैसे मायावती के पूर्व मुख्य सचिव के यहाँ से करोड़ों बरामद हुए। तमिलनाडु के एक बड़े अधिकारी को कोर्ट ने जेल भेजने को कहा। त्रिपुरा में पीडब्ल्यूडी मामले में एक बड़े अधिकारी को दोषी पाया गया। इन ब्यूरोक्रेट्स को भी पुरानी फाइलें खुलने का डर है