मुंबई। शिवसेना के मुखपत्र 'सामना' के संपादकीय में अमेरिका (US) के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के भारत दौरे को लेकर केंद्र पर जमकर निशाना साधा गया है। संपादकीय में कहा गया है कि गुलाम भारत में जब इंग्लैंड के राजा या रानी आते थे तो जनता के पैसों से उनके स्वागत की जैसी तैयारी होती थी वैसी ही तैयार ट्रंप के लिए भी हो रही है। ट्रंप के अहमदाबाद दौरे के लिए बड़ी-बड़ी दीवारें बनाई जा रही है, जिससे गरीबी को छुपाया जा सके, झुग्गी झोपड़ियों पर ट्रंप की नजर ना पड़े।
वहीं, अमेरिका के राजनीति पर सामना ने लिखा है कि अमेरिका के राष्ट्रपति अपने कार्यकाल में 'मजबूत'माने जाते हैं, उसी तरह ट्रंप भी हैं। ट्रंप ये कोई बड़े बुद्धिजीवी, प्रशासक, दुनिया का कल्याण करनेवाले विचारक हैं क्या? निश्चित ही नहीं लेकिन सत्ता पर बैठे व्यक्ति के पास होशियारी की गंगोत्री है। यह मानकर ही दुनिया में व्यवहार करना पड़ता है। सत्ता के सामने होशियारी चलती नहीं बाबा! 'मौका पड़े तो गधे को भी बाप कहना पड़ता है।
संपादकीय में कहा गया है कि अमेरिका के राष्ट्रपति अर्थात 'बादशाह' अगले सप्ताह हिंदुस्तान दौरे पर आनेवाले हैं इसलिए अपने देश में जोरदार तैयारी शुरू है। 'बादशाह' ट्रंप क्या खाते हैं, क्या पीते हैं, उनके गद्दे-बिछौने, टेबल, कुर्सी, उनका बाथरूम, उनके पलंग, छत के झूमर कैसे हों इस पर केंद्र सरकार बैठक, सलाह-मशविरा करते हुए दिखाई दे रही है।
गुलाम हिंदुस्तान में इंग्लैंड के राजा या रानी आते थे, तब उनके स्वागत की ऐसी ही तैयारी होती थी और जनता की तिजोरी से बड़ा खर्च किया जाता था. मिस्टर ट्रंप के बारे में भी यही हो रहा है। संपादकीय में कहा गया है, 'ट्रंप कोई दुनिया के 'धर्मराज' या 'मि. सत्यवादी' निश्चित ही नहीं हैं। वे एक अमीर, उद्योगपति और पूंजीपति हैं और हमारे यहां जिस तरह से बड़े उद्योगपति राजनीति में आते हैं या पैसों के जोर पर राजनीति को मुट्ठी में रखते हैं, ऐसे ही विचार ट्रंप के भी हैं। 'मौका पड़े तो गधे को भी बाप कहना पड़ता है। यह दुनिया की रीत है।
'ट्रंप के स्वागत के लिए हिंदुस्तान में या दिल्ली में कितनी उत्सुकता है यह पता नहीं। लेकिन मोदी-शाह के गुजरात में ट्रंप का आगमन सर्वप्रथम होने से वहां उत्सुकता उफान पर है। ट्रंप को पहले गुजरात में ही क्यों लेकर जाया जा रहा है? इस सवाल का सही जवाब मिलना कठिन है। मोदी ने ट्रंप को पहले गुजरात में ले जाने का तय किया है और उनके निर्णय का आदर होना चाहिए।
संपादकीय में कहा गया है, 'ट्रंप अमदाबाद एयरपोर्ट पर उतरेंगे इसलिए एयरपोर्ट और एयरपोर्ट के बाहर की सड़कों की 'मरम्मत' शुरू है। हम ऐसा पढ़ते हैं कि ट्रंप केवल तीन घंटों के दौरे पर आ रहे हैं और उनके लिए 100 करोड़ रुपया सरकारी तिजोरी से खर्च हो रहा है।
'लेकिन इस सबमें मजे की बात ऐसी है कि ट्रंप को सड़क से सटे गरीबों के झोपड़े का दर्शन न हो इसके लिए सड़क के दोनों ओर किलों की तरह ऊंची-ऊंची दीवारें बनाने का काम शुरू है। ट्रंप की नजर से गुजरात की गरीबी, झोपड़े बच जाएं, इसके लिए यह 'राष्ट्रीय योजना' हाथ में ली गई है, ऐसा कटाक्ष होने लगा है. ट्रंप को देश का दूसरा पहलू दिखे नहीं क्या यह उठा-पटक इसके लिए है?