प्रधानमंत्री और सत्ताधीशों का पहले पन्ने से गायब होना यह संकेत है कि अखबार अपने को बदल रहे हैं। अब अखबार 'आपकी जरूरत का' बन रहा है। वह आपके हिसाब से बनाया जा रहा है। उसे आपके सपनों, आकांक्षाओं, आवश्यकताओं के तहत बनाया जा रहा है।
ई-मीडिया की क्रांति के बाद अखबार अब खबर देने वाले पहले माध्यम नहीं रहे। सूचनाएं कई अन्य माध्यमों से हमें मिल चुकी होती हैं। एक समय में अखबारों से ही जानते थे हमारे देश, प्रदेश और शहर में क्या हुआ। सोशल मीडिया और मोबाइल क्रांति के चलते हर व्यक्ति अब सूचना संपन्न है। उसके पास सारी सूचनाएं आ चुकी हैं। अब वह 24 घंटे में एक बार आने वाले अखबार का क्या करे? जाहिर तौर पर संकट गहरा है। बावजूद इसके यह माना जा रहा है कि छपे हुए शब्दों पर भरोसा कम नहीं होगा, इसलिए अखबारों की अहमियत कायम रहेगी। अखबार के मूल तत्व मीडिया और सूचना क्रांति के बाद भी नहीं बदलेंगे। सोशल मीडिया का उफान आज है कल रहेगा, यह जरूरी नहीं। न्यू मीडिया भी कब तक न्यू रहेगा कहा नहीं जा सकता। हम याद करें तो टीवी क्रांति के समय भी यह माना गया था कि अब प्रिंट मीडिया को गहरा संकट है। किंतु ऐसा नहीं हुआ बल्कि चैनल क्रांति के चलते अखबार संभले, रंगीन हुए, ज्यादा सुदर्शन और आकर्षक प्रस्तुतिजन्य हुए। ऐसे में अखबारों की बेहतर प्रस्तुति और सिटीजन जर्नलिज्म की मांग बढ़ेगी।
इस नए समय ने डेस्क और फील्ड की दूरी को भी पाट दिया है। नए कंटेंट का विकास और सृजन यहां महत्वपूर्ण है। चलता है, वाला ट्रेंड अब विदाई की ओर है। कहते हैं अखबारों के डिजीटल एडीशन का सूरज नहीं ढलता, अखबार अब चौबीस घंटों के उत्पाद में बदल रहे हैं, वे भले घर में सुबह या शाम को एक बार आ रहे हैं किंतु उनका डिजीटल संस्करण 24X7 है। ऐसे में अपार अवसरों का सृजन भी हो रहा है। एक नए अखबार से मुलाकात हो रही है, जो 1991 के बाद पैदा हुआ है। यह बाजारीकरण, भूमंडलीकरण के मूल्यों से पैदा हुआ अखबार है। परिर्वतन के इसी प्रभाव को रेखांकित करते हुए 1982 में टीवी के कलर होने पर कवि-संपादक रघुवीर सहाय ने कहा था कि 'अब खून का भी रंग दिखेगा।' 1991 में भूमंडलीकरण की नीतियों को स्वीकार करने के बाद की मीडिया में अनेक ऐसे रंग दिख रहे हैं, जो हमारे इंद्रधनुष में नहीं थे। यह बिल्कुल नया अखबार है, जिसकी जड़ें स्वतंत्रता आंदोलन के गर्भनाल में नहीं हैं, उसे वहां खोजिएगा भी नहीं। नैतिक अपेक्षाएं तो बिल्कुल मत पालिएगा। निराशा होगी।