जो पाकिस्तान में अत्याचारों की तलवार तले जिंदगी और इज्जत लुटवा रहे हिन्दुओं, सिखों, बौद्धों को शरण देने का विरोध करते हुए सड़कों पर उतर रहे हैं और हिन्दुओं की संपत्तियाँ जला रहे हैं, वे मौलाना अबुल कलाम आजाद को नहीं बल्कि ओवैसी को पहचानते तथा मानते हैं।
दूसरी ओर मौलाना अबुल कलाम आजाद (पूरा नाम- मौलाना सैय्यद अबुल कलाम गुलाम मुहीयुदीन अहमद बिन खैरुद्दीन अल हुसैनी आजाद) कुरान के विद्वान थे। बाकायदा रोज़े रखते थे। सर्दी, गरमी, तूफान भी हो तो भी नमाज़ छोड़ते नहीं थे। उनकी इस्लाम पर लिखी किताबें मक्का विश्वविद्यालय में पढ़ाई जाती थीं। इस्लाम की विभिन्न धाराओं के शिखर विद्वान थे। 12 साल की उम्र में उनके पास घरेलू पुस्तकालय था। अपने से दुगुनी उम्र के लोगों को वे इस्लाम की शिक्षा देते थे। कुरान और हदीज़ पर उनका कहा हुआ निर्णायक माना जाता था। लेकिन वे गांधी जी के भक्त थे, बंगाल के विभाजन के विरोधी थे। बंगाल, बिहार और बाम्बे में क्रांतिकारी गतिविधियों में हिस्सा लिया।
शायद आपको ध्यान हो कि दिल्ली के जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय की स्थापना में मौलाना अबुल कलाम आजाद का बहुत बड़ा योगदान रहा है। लेकिन जामिया मिलिया के कट्टरपंथी छात्रों ने अबुल कलाम आजाद की सीख पर कोई ध्यान नहीं दिया। जिन लोगों का ज्ञान, विज्ञान और जीवन के उत्कर्ष से कोई संबंध नहीं है वे उन पर भारी पड़ गए जिनका सारा जीवन विज्ञान और दर्शन के मार्ग में बीता।