ताबूतों में रहने लगे हैं हांगकांग के लोग, एक ताबूत की कीमत है 18 हजार रुपए

हांगकांग (Hong kong ) में हर बिस्तर का किराया लगभग 17,781 रुपए महीने के आसपास होता है. किचन और टॉयलेट इसी बिस्तर से सटा हुआ होता है



हांगकांग (Hong Kong) में जगह की कमी इतनी बढ़ चुकी है कि यहां लोग लकड़ी के ताबूतनुमा घरों (coffin cubicles) में रहने को मजबूर हैं. 15 स्क्वैयर फीट के लकड़ी के ये बॉक्स ताबूत की शक्ल के होने के कारण कॉफिन क्यूबिकल भी कहलाने लगे हैं. कैनेडियन फोटोग्राफर बेनी लेम (Benny Lam) ने इन क्यूबिकल्स और यहां रहने वाले लोगों की जिंदगी की तस्वीरें ली.


प्रॉपर्टी की कीमत दिनोंदिन ऊपर जा रही है. ऐसे में बड़े शहरों और देशों का हाल और भी बुरा है, जो हिस्सा जितना डेवलप्ड है, वहां जमीन के छोटे टुकड़े की भी कीमत उतनी ही ज्यादा है. हांगकांग भी इसी दिक्कत से जूझ रहा है. लगभग 7.5 मिलियन आबादी वाले हांगकांग का हालिया सेंसस बताता है कि एक बड़ी आबादी इन्हीं कॉफिन क्यूबिकल्स में गुजारा कर रही है क्योंकि देश के पास विस्तार के लिए कोई developable जमीन का टुकड़ा बाकी नहीं है.



कोई विकल्प न होने और मकान भाड़े की कीमत बेतहाशा बढ़ने की वजह से कम आय वाले लोग बक्सों में रहने को मजबूर हैं. बक्सेनुमा इन घरों में किचन और टॉयलेट एक साथ होते हैं जो काफी छोटे होते हैं और लकड़ी या फिर तारों को जोड़कर बनाए जाते हैं. फोटोग्राफर बेनी लेम ने यहां रहने वालों की जिंदगी की तस्वीरें लीं और इस सिरीज को ट्रैप्ड नाम दिया.


कॉफिन क्यूबिकल बनवाने लोग रीयल एस्टेट से ताल्लुक रखते हैं. केज या कॉफिन बनवाने के लिए ये लोग लगभग 400 स्क्वैयर फीट का घर किराए पर लेते या खरीदते हैं. फिर उसे 20 डबल डेकर बिस्तरों के साथ कॉफिन क्यूबिकल में बदल देते हैं. हर बिस्तर का किराया $250 USD यानी लगभग 17,781 रुपए महीने के आसपास होता है.


इन बक्सेनुमा मकानों में सिर्फ सिंगल युवक या युवतियां ही नहीं, बल्कि पूरे-पूरे परिवार भी रह रहे हैं. हांगकांग में अंडरप्रिविलेज्ड लोगों के जीवन की बेहतरी के लिए काम कर रहे एक NGO द सोसाइटी फॉर कम्युनिटी ऑर्गनाइजेशन (एसओसीओ) के अनुसार लगभग 2 लाख लोग, जिनमें 40 हजार बच्चे भी शामिल हैं, इन घरों में रह रहे हैं.


यहां रहने वाले अधिकतर लोग रेस्टोरेंट में वेटर, क्लीनर, मॉल्स में सिक्योरिटी गार्ड्स और डिलीवरी का काम करते हैं जो खुले घरों का किराया नहीं दे पाते हैं और ऐसे घरों में रहने लगते हैं. घर इतने छोटे होते हैं कि छह फुट की ऊंचाई वाले लोग तनकर खड़े नहीं हो सकते. सोने के लिए पैर सिकोड़कर सोना पड़ता है. बर्ड्स आई व्यू की मदद से इन क्यूबिकल्स की तस्वीरें ली गईं और दिखाया गया कि कैसे जगह की कमी की वजह से लोग बिस्तर के चारों ओर ही रहने, खाना पकाने, टॉयलेट जाने, पढ़ने और जीने को मजबूर हैं.


पिछले 10 सालों में इन केज या कॉफिन क्यूबिकल्स की संख्या तेजी से बढ़ी है. बस फर्क इतना था कि पहले ये तारों को जोड़कर बने होते हैं, जबकि अब लकड़ी के डिब्बे बनाए जा रहे हैं ताकि रहनेवालों को थोड़ी प्राइवेसी मिल सके. इन घरों में अलग-अलग उम्र और जेंडर के लोग रह रहे हैं. बेनी बताते हैं कि वे फोटोग्राफी के लिए हजारों सीढ़ियां चढ़े और लगभग 100 फ्लैट्स के रहनेवालों से बात की.