चार साल में काट दिए गए 95 लाख पेड़, प्रदूषण पर हमारी चिंता क्या सिर्फ दिखावा हैं?

बढ़ते प्रदूषण के बावजूद हर साल देश में विकास के नाम पर करीब 24 लाख पेड़ काटे जा रहे हैं. पिछले चार साल में तेलंगाना में 15 लाख से ज्यादा और महाराष्ट्र में 13.42 लाख पेड़ों की बलि दी गई है. आखिर कैसे मिलेगी साफ हवा?



नई दिल्ली. हम सब बढ़ते प्रदूषण (Pollution) से परेशान हैं. देश के ज्यादातर शहरों में लोग जहरीली हवा की वजह से मास्क लगाकर चलने लगे हैं तो दूसरी ओर विकास योजनाओं (Development project) के नाम पर पिछले चार साल में लगभग 95 लाख पेड़ काट दिए गए. जबकि यही पेड़ हमारे पर्यावरण को शुद्ध रखने का काम करते हैं. हमें ऑक्सीजन देते हैं. 95 लाख तो सरकारी आंकड़ा है, असल में कितने पेड़ काटे गए इसका कोई रिकॉर्ड नहीं. सवाल ये है कि क्या पर्यावरण को लेकर हमारी और सरकारों की चिंता सिर्फ दिखावा हैं?

नवंबर में पूरा देश बढ़ते प्रदूषण की चिंता में डूबा हुआ था. सब इसके लिए किसानों (Farmers) को कसूरवार मान रहे थे, लेकिन अचानक लोग चुप हो गए. क्यों? क्या यह समस्या खत्म हो गई है? नहीं, हमारे ज्यादातर शहर साल भर प्रदूषित रहते हैं. दिल्ली में तो इस साल सिर्फ 17 और 18 अगस्त को हवा की गुणवत्ता अच्छी थी. पर्यावरण मंत्रालय की एक रिपोर्ट बताती है कि दिल्ली-एनसीआर सहित देश के 122 शहर प्रदूषण की मार झेल रहे हैं. इन गंभीर चुनौतियों के बावजूद हम पेड़ों की बलि चढ़ाने से बाज नहीं आ रहे.



इन राज्यों में काटे गए सबसे ज्यादा पेड़

पेड़ों के कटान पर पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (Ministry of Environment, Forest and Climate Change) की एक रिपोर्ट आई है, जो आपकी आंख खोल सकती है. इसके मुतबिक 2015-2016 से 2018-2019 तक देश में 94,98,516 पेड़ काट दिए गए. सबसे ज्यादा पेड़ काटने वाले राज्यों में तेलंगाना, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ , आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश और हरियाणा शामिल हैं. बेरहम विकास के नाम पर तेलंगाना में 15 और महाराष्ट्र में 13.42 लाख पेड़ काट दिए गए.


हालांकि, केंद्र सरकार कह रही है कि इसके बदले हम ज्यादा पेड़ लगवा रहे हैं. पर्यावरण राज्य मंत्री बाबुल सुप्रियो का कहना है कि जितने पेड़ काटे गए हैं उसकी भरपाई के लिए 10.32 करोड़ पौधे लगाए गए हैं. पेड़ों को तभी काटा जाता है जब बहुत जरूरी हो. देश में वन क्षेत्र बढ़ रहा है.

पर्यावरण से जुड़े सवाल

सुप्रियो के इस तर्क से पर्यावरणविद सहमत नहीं हैं. पर्यावरणविद एन. शिवकुमार ने पेड़ काटने वाली सरकारों से कुछ सवाल किए हैं.

>>क्या 40-50 साल पुराने पेड़ों की भरपाई नए पौधे कर सकते हैं?

>> जो पौधारोपण किया जाता है क्या वो सारे पौधे पेड़ बन जाते हैं?

>> सरकार दावा कर रही है कि देश में वन क्षेत्र बढ़ रहा है तो क्या आबादी नहीं बढ़ रही?

>>क्या प्रदूषण बढ़ाने वाले कारण नहीं बढ़ रहे? क्या बढ़ता वन क्षेत्र बढ़ती आबादी की जरूरतें पूरी करने के लिए पर्याप्त है?

>>क्या 40 से 50 साल पुराने बेशकीमती पेड़ों को काटने की बजाय उन्हें ट्रांसप्लांट करना बेहतर विकल्प नहीं है?


क्यों नहीं मिलता पौधारोपण का फायदा?  

सेव अरावली के संस्थापक जितेंद्र भड़ाना कहते हैं कि एक पेड़ के बदले 10 पेड़ लगाने का नियम है लेकिन यह कहीं नहीं लिखा है कि कहां लगाएंगे. काटने वाला कहीं भी इसे लगा सकता है. इसलिए जिसके आसपास का पेड़ काटा गया है उसे तो दस गुना पेड़ लगाने का फायदा नहीं मिलता.

पीपल के बदले पीपल ही लगाया जाए

भड़ाना का कहना है कि वन विभाग नए नियम बनाकर यह प्रावधान करे कि जहां पेड़ काटे जाएंगे उसके एक-दो किलोमीटर के अंदर ही पौधारोपण करना पड़ेगा. पीपल का पेड़ कटे तो उसके बदले पीपल का ही लगाया जाए.


पेड़ों के बारे में यह भी जानिए

>>विशेषज्ञों के मुताबिक 18 फीट परिधि का 100 फीट ऊंचा पेड़ हर साल 260 पाउंड ऑक्सीजन देता है. इतना बड़ा पेड़ बनने में कितने साल लगेंगे इसका अंदाजा आप खुद लगाईए. दो छायादार पेड़ चार परिवार को जीवन भर ऑक्सीजन दे सकते हैं.

>>एन. शिवकुमार कहते हैं कि नए पौधों को पेड़ बनने में कम से कम 25 साल लगते हैं. इतने दिनों में कैनोपी बनती है. कैनोपी ही प्रदूषण रोकती है और छाया देती है. एक पीढ़ी की जवानी निकल जाएगी तब जाकर उन्हें उसका फायदा मिलेगा.