श्रीलंका के नए राष्ट्रपति गोताबेया राजपक्षे के बारे में जानें सबकुछ

एलटीटीई के निशाने पर रहे गोताबेया 2006 में संगठन के आत्मघाती हमले में बाल-बाल बचे थे. माना जाता है कि उनका झुकाव चीन की ओर अधिक है



गोताबेया राजपक्षे ने श्रीलंका के 7वें राष्ट्रपति के तौर पर शपथ ली. श्रीलंका के पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे के भाई व पूर्व रक्षा मंत्री गोताबेया राजपक्षे ने श्रीलंका के राष्ट्रपति चुनाव में रविवार को जीत हासिल कर ली लेकिन लगभग सभी तमिल और मुस्लिम अल्पसंख्यक वाले प्रांतों में हार गए.


गोतबेया राजपक्षे को 4,940,849 मतों के साथ 51.41 प्रतिशत वोट मिले, जबकि उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी, न्यू डेमोक्रेटिक फ्रंट (एनडीएफ) व यूनाइडेट नेशनल पार्टी (यूएनपी) के उपनेता साजित प्रेमदासा को 4,106,293 मतों के साथ 42.72 प्रतिशत वोट से संतोष करना पड़ा.


देश के कानून के अनुसार, राष्ट्रपति के दावेदार को चुनाव जीतने के लिए 50 फीसदी या उससे अधिक वोट प्राप्त करने होते हैं.


प्रेमदासा ने एक बयान में गोताबेया को बधाई देते हुए कहा कि वह तत्काल प्रभाव से सत्तारूढ़ यूनाइटेड नेशनल पार्टी के उपनेता का पद छोड़ देंगे. एलटीटीई की निर्ममतापूर्ण सफाई की वजह से गोताबेया को 'टर्मिनेटर' भी कहा जाता है.


एलटीटीई को निर्दयतापूर्ण तरीके से किया खत्म


गोताबेया राजपक्षे वह व्यक्ति हैं जिन्हें 'लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम' (एलटीटीई) के साथ तीन दशक से चल रहे गृहयुद्ध को निर्दयतापूर्ण तरीके से खत्म करने का श्रेय जाता है. गोताबेया की द्विपीय देश में विवादित एवं नायक दोनों की छवि है.


बहुसंख्यक सिंहली बौद्ध उन्हें 'युद्ध नायक' मानते हैं वहीं अधिकतर तमिल अल्पसंख्यक उन्हें अविश्वास की नजर से देखते हैं. इसी वजह से वह तमिल बहुसंख्यक वाले गृह युद्ध से प्रभावित उत्तरी प्रांत और मुस्लिम बहुल पूर्वी प्रांत में 65 से 70 प्रतिशत वोट के साथ हारे हैं.


गोताबेया 70 वर्षीय नेता हैं जिन्होंने 1980 के दशक में भारत के पूर्वोत्तर स्थित 'काउंटर इंसर्जेंसी एंड जंगल वारफेयर स्कूल' में प्रशिक्षण लिया था.


बड़े भाई महिंदा राजपक्षे के राष्ट्रपति रहने के दौरान उन्होंने वर्ष 2005 से 2014 में रक्षा सचिव की जिम्मेदारी निभाई थी. साल 1983 में उन्होंने मद्रास विश्वविद्यालय से रक्षा अध्ययन में स्नातकोत्तर की उपाधि हासिल की.


गोताबेया 2012 और 2013 में रक्षा सचिव रहते हुए भारत के दौरे पर आए थे. तमिल मूल के परिवार जिनके अपने गृहयुद्ध के दौरान मारे गए या लापता हो गए हैं वे गोताबेया पर युद्ध अपराध का आरोप लगाते हैं.


गोताबेया से तमिल अल्पसंख्यकों को लगता है डर


सिंहली बौद्धों में गोताबेया की लोकप्रियता से मुस्लिम भी डरे हैं. उन्हें आशंका है कि ईस्टर के मौके पर इस्लामी आतंकवादियों के गिरजाघरों पर किए गए हमले के बाद दोनों समुदायों में पैदा हुई खाई और चौड़ी होगी. हिंदू और मुस्लिम की संयुक्त रूप से श्रीलंका की कुल आबादी में 20 फीसदी हिस्सेदारी है.


राष्ट्रपति चुनाव के लिए श्रीलंका पीपुल्स पार्टी (एसएलपीपी)का प्रत्याशी नामित होने के बाद अक्टूबर में पहली बार मीडिया से बातचीत करते हुए गोताबेया ने कहा था कि अगर वह जीतते हैं तो युद्ध समाप्ति के बाद संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (यूएनएचआरसी) के समक्ष जताई गई प्रतिबद्धता या मेलमिलाप का सम्मान नहीं करेंगे.


उन्होंने कहा, 'हम संयुक्त राष्ट्र के साथ हमेशा काम करेंगे लेकिन पिछली सरकार के दौरान उनके (संयुक्त राष्ट्र) के साथ किए गए करार का सम्मान नहीं करेंगे.”


उल्लेखनीय है कि सितंबर 2015 में यूएनएचआरसी की ओर से पारित प्रस्ताव का श्रीलंका सह प्रायोजक है जिसमें मानवाधिकार, जवाबदेही और परिवर्ती न्याय को लेकर प्रतिबद्धता जताई गई है. 47 सदस्यीय परिषद् में भारत सहित 25 देशों ने प्रस्ताव का समर्थन किया. गोताबेया पर उनकी देखरेख में नागरिकों और विद्रोही तमिलों को यातना दिये जाने और अंधाधुध हत्या तथा बाद में राजनीतिक हत्याओं को अंजाम दिये जाने आरोप है.


2006 में बाल बाल बचे थे गोताबेया


एलटीटीई के निशाने पर रहे गोताबेया 2006 में संगठन के आत्मघाती हमले में बाल-बाल बचे थे. माना जाता है कि उनका झुकाव चीन की ओर अधिक है. गोताबेया के भाई के शासन में चीन ने बड़े पैमाने पर श्रीलंका की आधारभूत परियोजनाओं में निवेश किया था.


चुनाव से पहले विपक्षी यूनाइटेड नेशनल पार्टी (यूएनपी)ने गोताबेया पर अमेरिकी नागरिकता रखने का आरोप लगाया था और दावा किया था कि उन्होंने दस साल तक अमेरिका में निवास किया है. इसपर गोताबेया ने सफाई दी कि चुनाव लड़ने के लिए उन्होंने इस साल अमेरिका की दोहरी नागरिकता छोड़ दी थी.


उच्चतम न्यायालय ने अक्टूबर में उनकी नागरिकता को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी थी और सारे आरोपों से उन्हें बरी कर दिया था. गोताबेया का जन्म 20 जून 1949 में मतारा जिले के पलाटुवा में एक प्रतिष्ठित राजनीतिक परिवार में हुआ था. वह नौ भाई बहनों में पांचवें स्थान पर हैं.


ऐसा रहा प्रारंभिक जीवन


उनके पिता डी ए राजपक्षे 1960 के दशक में विजयानंद दहानायके सरकार में प्रमुख नेता थे और श्रीलंका फ्रीडम पार्टी के संस्थापक सदस्य थे. गोताबेया ने अपनी स्कूली पढ़ाई आनंद कॉलेज, कोलंबो से पूरी की और 1992 में कोलंबो विश्वविद्यालय से सूचना प्रौद्योगिकी में स्नातकोत्तर की उपाधि हासिल की.


वह वर्ष 1971 में सीलोन (श्रीलंका का पुराना नाम) सेना में अधिकारी कैडेट के रूप में शामिल हुए. वर्ष 1991 में गोताबेया सर जॉन कोटेलवाला रक्षा अकादमी के उप कमांडेंट नियुक्त किए और 1992 में सेना से सेवानिवृत्त होने तक इस पद पर बने रहे.


अपने 20 वर्ष के सैन्य सेवाकाल में गोताबेया ने तीन राष्ट्रपतियों जे आर जयवर्धने, रणसिंघे प्रेमदासा और डीबी विजेतुंगा से वीरता पुरस्कार हासिल किया.


सेवानिवृत्ति के बाद गोताबेया ने कोलंबो विश्वविद्यालय से सूचना प्रौद्योगिकी में स्नातकोत्तर डिप्लोमा की पढ़ाई की. उसके बाद वह कोलंबो की कंपनी से मार्केटिंग प्रबंधक के तौर जुड़े. वर्ष 1998 में वह अमेरिका चले गए और वहां पर सूचना प्रौद्योगिकी पेशेवर के तौर पर लॉस एंजिलिस स्थित लोयला लॉ स्कूल में काम किया.


गोताबेया वर्ष 2005 में भाई महिंदा राजपक्षे के राष्ट्रपति चुनाव अभियान में मदद करने के लिए स्वदेश लौटे और श्रीलंका की दोहरी नागरिकता ली.