आखिर क्यों नेताओं से ज्यादा नौकरशाहों पर भरोसा करते हैं योगी ?

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ''वन मैन आर्मी'' की तरह सरकार चला रहे हैं। उनके निर्णय सरकार के सामूहिक निर्णय नहीं होते हैं। वह चुने गए नुमांइदों से अधिक अपने अधिकारियों पर भरोसा करते हैं।





उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपने ढाई−पौने तीन साल के कार्यकाल में 700 से अधिक भ्रष्ट और काम के प्रति लापरवाह अधिकारियों/कर्मचारियों को जबरन रिटायर या फिर बर्खास्त कर चुके हैं। इतने बड़े पैमाने पर यूपी ही नहीं पूरे देश में शायद ही कभी किसी और सरकार ने कार्रवाई की होगी। योगी सरकार की इस सख्ती का जमीनी आकलन किया जाए तो प्रथम दृष्टया यही अहसास होता है कि उत्तर प्रदेश के नौकरशाहों/अधिकारियों और कर्मचारियों के बीच योगी सरकार की तूती बोलती होगी। भ्रष्टाचार जड़ से समाप्त हो गया होगा। सरकारी मुलाजिम पूरी ईमानदारी से अपना काम कर रहे होंगे। योगी जी की इस सख्ती की अगर तुलना की जाए तो यह सख्ती ठीक वैसे ही नजर आती है जैसे कभी लड़कियों और महिलाओं से छेड़छाड़ के खिलाफ 'एंटी रोमियो' या फिर खूंखार अपराधियों के विरूद्ध एनकाउंटर अभियान चला था, लेकिन न तो एंटी रोमियो अभियान के बाद प्रदेश में छेड़छाड़ की घटनाएं कम हुईं और न ही खूंखार अपराधियों का एनकांउटर किए जाने के बाद अपराध का ग्राफ घटा। ठीक ऐसे ही सैंकड़ों भ्रष्ट अधिकारियों/कर्मचारियों के खिलाफ जबरिया रिटायर्ड किए जाने और बर्खास्तगी के बाद प्रदेश की सरकारी मशीनरी में कोई बड़ा बदलाव आया है। हकीकत यही है कि आज भी सरकारी मशीनरी की कारगुजारी के चलते योगी सरकार की छवि दागदार हो रही है। विकास की योजनाएं कच्छप गति से चल रही हैं। केन्द्रीय योजनाओं का बुरा हाल है। मोदी जी की सबसे अधिक महत्वाकांक्षी योजनाएं प्रधानमंत्री आवास योजना, आयुष्मान भारत उत्तर प्रदेश में अपनी मंजिल नहीं तय कर पा रही हैं।

 

उक्त नाकामियों के कारणों को तलाशा जाए तो इसके लिए योगी की कार्यशैली ही अधिक जिम्मेदार है। योगी 'वन मैन आर्मी' की तरह सरकार चला रहे हैं। उनके निर्णय सरकार के सामूहिक निर्णय नहीं होते हैं। वह चुने गए नुमांइदों से अधिक अपने अधिकारियों पर भरोसा करते हैं। भले ही योगी भ्रष्टचारियों के खिलाफ कार्रवाई कर रहे हों, लेकिन सिक्के का दूसरा पहलू यह भी है कि योगी विश्वास भी नौकरशाहों पर ही कर रहे हैं, जबकि योगी का जनप्रतिनिधियों के प्रति अधिक समर्पण का भाव होना चाहिए। छोटे−छोटे नेताओं और कार्यकर्ताओं की तो बात दूर भाजपा के जनप्रतिनिधि पार्षद, विधायक ही नहीं सांसद तक की योगी राज में नहीं सुनी जा रही है। योगी के पास अपने नेताओं की बात सुनने का समय नहीं है जबकि नौकरशाहों से वह घिरे रहते हैं। नौकरशाह जैसी तस्वीर सीएम को दिखाना चाहते हैं, वह वैसी तस्वीर देखने को मजबूर हो जाते हैं। यही वजह थी योगी ने अपने पूरे शासनकाल में भले ही सात सौ के करीब अधिकारियों को बर्खास्त या फिर जबरिया रिटायर किया हो, लेकिन अभी तक इस लिस्ट में किसी आईएएस अधिकारी का नाम नहीं शामिल था। हाँ, केन्द्र सरकार जरूर यूपी कैडर के पांच आईएएस अधिकारियों को अनिवार्य सेवानिवृत्ति दे चुकी है। इन सभी के खिलाफ अलग−अलग वजहों से कार्रवाई की गई थी। इनमें 1980 बैच के शिशिर प्रियदर्शी, 1983 बैच के अतुल बगाई, 1985 बैच के अरुण आर्या, 1990 बैच के संजय भाटिया व 1997 बैच की रीता सिंह शामिल हैं।

 


योगी सरकार द्वारा आईएएस राजीव कुमार द्वितीय को रिटायर किया जाता है तो वह ऐसे पहले नौकरशाह बन सकते हैं जिन्हें नोयडा प्लाट आवंटन घोटाले के चलते योगी सरकार जबरिया रिटायर करने जा रही हैं। राजीव 2016 से निलंबित चल रहे हैं और 30 जून 2021 को रिटायर होने वाले हैं। 1983 बैच के आईएएस और सपा राज में लंबे समय तक प्रमुख सचिव नियुक्ति रहे राजीव नोएडा प्लॉट आवंटन घोटाले में दो वर्ष जेल की सजा काट चुके हैं।

 

भले ही राजीव कुमार द्वितीय पहले आईएएस अधिकारी हों जिनको योगी सरकार जबरिया रिटायर करने का मन बनाए हुए है, लेकिन सूत्र बताते हैं कि राजीव कुमार द्वितीय के बाद भी कई आईएएस−पीसीएस योगी सरकार के निशाने पर हैं। करीब एक दर्जन आईएएस और पीसीएस अधिकारी किसी न किसी मामले में जांच का सामना कर रहे हैं। ऐसे अधिकारी फिलहाल महीनों से साइडलाइन या वेटिंग में हैं। राजीव कुमार द्वितीय पर गाज गिरने वाली है तो कई और नौकरशाह कार्रवाई वाली लिस्ट में अगर अभी भी शामिल हैं तो इसकी बड़ी वजह यही है कि योगी को लगातार यह फीडबैक मिल रहा है कि जनता को लगता है कि मुख्यमंत्री ईमानदार हैं, लेकिन उनसे भ्रष्टाचार नहीं रूक रहा है। छोटे कर्मियों के खिलाफ कार्रवाई जरूर हो रही है, लेकिन बड़े अफसरों पर हाथ नहीं डाला जा रहा। इस फीडबैक के बाद बड़े अफसरों के भ्रष्टाचार व अनुशासनहीनता से जुड़े आरोपों की जांच−पड़ताल बड़े पैमाने पर शुरू हो गई है। भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ योगी सरकार द्वारा बिना किसी दबाव के कार्रवाई की जाएगी। इसी कड़ी में जिन अधिकारियों के खिलाफ शिकायत आ रही है, उन्हें उस पद से भी हटाया जा रहा है जिसको लेकर उनके खिलाफ शिकायत है ताकि जांच निष्पक्ष तरीके से आगे बढ़ सके।

 


बहरहाल, योगी पौने तीन साल बाद ब्यूरोक्रेसी को लेकर सख्त जरूर नजर आ रहे हैं, लेकिन अभी भी नौकरशाही को हैंडिल करने के मामले में मायावती राज की बराबरी नहीं कर पाए हैं। तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती जिस जिले की स्थलीय जांच के लिए रवाना होती थीं, वहां के अफसरों की हार्ट बीट पहले ही बढ़ जाया करती थी। कलेक्टर और कप्तान तक दहशत में रहते थे। लोगों को पता था कि मायावती के दौरे का मतलब ही निलंबन और तबादले हैं। लेकिन, हकीकत यह भी है कि तब सस्पेंड किए गए अफसर कब बहाल हुए, लोगों को अंदाजा नहीं लग पाता था। वहीं, मौजूदा सरकार में किसी भी तरह का आरोप लगते ही अफसर वेटिंग में पहुंचा दिए जाते हैं। महीनों बाद भी उनको तैनाती नहीं मिल पा रही है जिन अधिकारियों की जांच शुरू हो रही है। जांच के दायरे में आए अधिकारियों की कड़ाई से निगरानी हो रही है और यदि भ्रष्टाचार व अनुशासनहीनता के आरोप सही साबित होते हैं तो दंड मिलना पक्का हो जाता है। इसी के चलते आईएएस अधिकारी अभय, विवेक, देवीशरण उपाध्याय, पवन कुमार, अजय कुमार सिंह, प्रशांत शर्मा लम्बे समय से वेटिंग में चल रहे हैं।

 

इसी प्रकार आईएएस अधिकारी अमरनाथ उपाध्याय, केदारनाथ सिंह, शारदा सिंह (निलंबन के बीच रिटायर) को जांच के बीच में निलंबित कर दिया गया है। योगी सरकार ने लंबे समय से लंबित अभियोजन स्वीकृतियों पर भी निर्णय लिया है और दो सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारियों के खिलाफ अभियोजन को स्वीकृति दे दी है। गाजियाबाद विकास प्राधिकरण में उपाध्यक्ष रहे सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी राजेंद्र प्रसाद त्यागी व निर्यात निगम के एमडी रहे तुलसी गौड़ के खिलाफ तैनाती के दौरान विभिन्न अनियमितताओं के मामले में अभियोजन स्वीकृति दे दी गई है। एक अन्य आईएएस अधिकारी मस्तराम कुकरेती के खिलाफ मामला चलाने लायक नहीं पाया गया।

 

आईएएस की तरह पीसीएस अधिकारी अशोक कुमार शुक्ला, अशोक कुमार लाल, रणधीर सिंह दुहन भ्रष्टाचार के चलते बर्खास्त चल रहे हैं। पीसीएस प्रभु दयाल, एसडीम से तहसीलदार के पद पर तो गिरीश चंद्र श्रीवस्तव को डिप्टी कलेक्टर से तहसीलदार के पद पर पदावनत कर दिया गया है। भ्रष्टाचार के चलते पीसीएस अधिकारी घनश्याम सिंह, राजकुमार द्विवेदी, छोटेलाल मिश्र, अंजु कटियार (जेल में), विजय प्रकाश तिवारी, शैलेंद्र कुमार, राज कुमार, सत्यम मिश्रा, देवेंद्र कुमार, सौजन्य कुमार विकास निलंबित चल रहे हैं।

 

बताते चलें कि भ्रष्टाचार के दलदल में फंसे करीब 700 अधिकारियों के खिलाफ योगी सरकार दंडनात्मक कार्रवाई कर चुकी है। इस कार्रवाई की जद में अभी तक ऊर्जा विभाग के 170, गृह विभाग के 51 अफसर, परिवहन विभाग के 37 कर्मी, राजस्व विभाग के 36, बेसिक शिक्षा विभाग के 26 अधिकारी−कर्मचारी, लोक निर्माण विभाग के 18 कर्मी, श्रम विभाग के 16 अफसर, वाणिज्य कर विभाग के 16 अधिकारी−कर्मचारी और संस्थागत वित्त विभाग के 16 कर्मी आ चुके हैं।


लब्बोलुआब यह है कि योगी द्वारा अपनी पार्टी के नेताओं/जनप्रतिनिधियों से अधिक महत्व सरकारी अधिकारियों को देने की वजह से नौकरशाह बेलगाम हो गए हैं। अगर ऐसा न होता तो रायबरेली के जिलाधिकारी की इतनी हिम्मत नहीं हो सकती थी कि वह उस पीसीएस ट्रेनी अधिकारी को थप्पड़ जड़ देते जो अपने परिवार के एक सदस्य की मौत के लिए योगी सरकार से इंसाफ मांग रहा था। यह खबर अखबारों में छपी, लेकिन योगी सरकार द्वारा इसका संज्ञान तब लिया गया जब केन्द्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने पूरे घटनाक्रम पर टि्वट करके नाराजगी व्यक्त की। इसी प्रकार से देवरिया में जिलाधिकारी सिर्फ इसलिए अपना आपा खो बैठे थे क्योंकि एक व्यापारी अपनी गाड़ी वहां खड़ी कर बैठा, जहां पर जिलाधिकारी महोदय का निरीक्षण करने के लिए आना था। तमतमाए जिलाधिकारी ने स्वयं तो व्यापारी को पीटा ही था बाद में पुलिस से भी पिटवाया और फिर थाने लेकर पूरे घटनाक्रम पर व्यापारी से ही माफी नामा भी लिखवाया। यहां कोई स्मृति ईरानी नहीं आईं। इसलिए जिलाधिकारी का बाल भी बांका नहीं हुआ।