भारतीय मतदाता संगठन द्वारा "भारतीय नागरिक संहिता" पर आयोजित सेमिनार में संघ के वरिष्ठ प्रचारक इंद्रेश कुमार, विश्व हिंदू परिषद के कार्यकारी अध्यक्ष आलोक कुमार, सुप्रीमकोर्ट के पूर्व जज जस्टिस प्रफुल पंत, पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ संजय पासवान और के जी अल्फोंस, हाईकोर्ट के पूर्व जज जस्टिस इकबाल अंसारी और जस्टिस जियाउल खान, एडिशनल सॉलिसिटर जनरल अमन लेखी, आध्यात्मिक गुरु पवन सिन्हा, उद्योगपति जफर सरेशवाला, मानवाधिकार कार्यकर्ता ख्वाजा इफ्तिखार अहमद और जकिया सोमन ने एक मत से भारतीय नागरिक संहिता का ड्राफ्ट बनाने और सार्वजनिक करने की मांग की
संघ के वरिष्ठ प्रचारक इंद्रेश कुमार ने कहा कि भारतीय नागरिक संहिता से देश और समाज को सैकड़ों जटिल कानूनों से मुक्ति मिलेगी. वर्तमान समय में लागू ब्रिटिश कानूनों से सबके मन में हीनभावना पैदा होती है. इसलिए भारतीय नागरिक संहिता से हम हीन भावना से मुक्त हो सकेंगे. 'एक पति-एक पत्नी' की अवधारणा सभी भारतीयों पर लागू होगी और अपवाद का लाभ सभी भारतीयों को मिलेगा, चाहे वह पुरुष हो या महिला, हिंदू हो या मुसलमान, पारसी हो या इसाई. न्यायालय के माध्यम से विवाह-विच्छेद करने का एक सामान्य नियम सबके लिए लागू होगा. विशेष परिस्थितियों में मौखिक तरीके से विवाह विच्छेद करने की अनुमति सभी नागरिकों को होगी, चाहे वह पुरुष हो या महिला, हिंदू हो या मुसलमान, पारसी हो या इसाई.
विश्व हिंदू परिषद के कार्यकारी अध्यक्ष आलोक कुमार ने कहा कि भारतीय नागरिक संहिता के लागू नहीं होने से एक नहीं अनेक समस्याएं हैं. मुस्लिम कानून मे एक पति-चार पत्नी की छूट है लेकिन अन्य धर्मो पर एक पति-एक पत्नी का कठोर नियम लागू है, बाझपन या नपुंसकता जैसे उचित कारण होने पर भी दूसरा विवाह अपराध है और इसके लिए जेल जाना पड़ता है. जेल से बचने के लिए कई लोग मुस्लिम धर्म अपना लेते हैं. पाकिस्तान में बिना पहली पत्नी की सहमति से दूसरा विवाह नहीं हो सकता हैं. मुस्लिम लड़कियों की वयस्कता की उम्र अस्पष्ट है इस कारण 13 वर्ष की उम्र मे भी लड़कियों का विवाह होता है जबकि अन्य धर्मो मे लड़कियों की उम्र 18 वर्ष और लड़को की उम्र 21 वर्ष है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 20 वर्ष से पहले गर्भधारण करना जच्चा-बच्चा दोनों के लिए हानिकारक है इसलिए लड़का-लड़की की विवाह की न्यूनतम उम्र 21 करना बहुत जरूरी है भारतीय मतदाता संगठन के कार्यकारी अध्यक्ष और सुप्रीम कोर्ट के वकील अश्विनी उपाध्याय ने कहा कि 23 नवंबर 1948 को विस्तृत चर्चा के बाद संविधान में अनुच्छेद 44 जोड़ा गया था और सरकार को निर्देश दिया गया था कि वह सभी नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता लागू करें. संविधान निर्माताओं की मंशा थी कि अलग-अलग धर्म के लिए अलग-अलग कानूनों के बजाय सभी नागरिकों के लिए धर्म जाति भाषा क्षेत्र और लिंग निरपेक्ष एक 'भारतीय नागरिक संहिता' लागू होना चाहिए. अंग्रेजो द्वारा 1860 में बनाई गई भारतीय दंड संहिता, 1961 में बनाया गया पुलिस ऐक्ट, 1872 में बनाया गया एविडेंस एक्ट और 1908 में बनाया गया सिविल प्रोसीजर कोड सहित सैकड़ों अंग्रेजी कानून सभी भारतीय नागरिकों पर समान रूप से लागू हैं. पुर्तगालियों द्वारा 1867 में बनाया गया पुर्तगाल सिविल कोड गोवा के सभी नागरिकों पर समान रूप से लागू है लेकिन विस्तृत चर्चा के बाद बनाया गया आर्टिकल 44 लागू करने के लिए कभी गंभीर प्रयास नहीं किया गया. आजतक भारतीय नागरिक संहिता का एक मसौदा भी नहीं बनाया गया. परिणाम स्वरूप बहुत कम लोगों को ही इससे होने वाले लाभ के बारे में पता है.