पाकिस्तान में अहमदिया मुसलमानों के साथ टकराव की घटना लगातार आती रही है जिनमें उनकी मौत भी होती रही। पाकिस्तान का मानना है कि अहमदिया मुसलमान इस्लाम धर्म के मानने वालों को गुमराह कर रहे हैं और एक इस्लामिक देश में गैर इस्लामिक कृत्य पर अंकुश नहीं लगाया गया तो इस्लाम धर्म पर विपरीत असर पड़ेगा।
वैसे तो इस्लाम के सभी अनुयायी खुद को मुसलमान कहते हैं। लेकिन इस्लामी कानून यानी फिकह और इतिहास की अपनी-अपनी समझ के अनुसार मुसलमान कई पंथों में बंटा है। बड़े पैमाने पर या संप्रदाय के आधार पर देखा जाए तो मुसलमानों को दो हिस्सों सुन्नी और शिया में बांटा जा सकता है। हालांकि शिया और सुन्नी भी कई फिरकों या पंथों में बंटे हुए हैं। पिछले वर्ष 24 दिसंबर को अमेरिका में अहमदिया मुसलमानों के संगठन के प्रवक्ता हारिस जफर को ईमेल के जरिये एक लीगल नोटिस प्राप्त हुआ। ये नोटिस अहमदिया समुदाय की वेबसाइट ट्रूइस्लाम के बारे में था और पाकिस्तान टेलिकम्युनिकेशन अथाॅरिटी की तरफ से भेजा गया था। अहमदिया समुदाय की वेबसाइट को पीटीए की तरफ से भेजे गए नोटिस का मजमून कुछ इस प्रकार से था- इस बात पर गौर किया जाए कि अहमदिया या कादियानी ना ही अपने आप को सीधे या परोक्ष रूप से मुसलमान कह सकते हैं और ना ही अपने धर्म को इस्लाम कह सकते हैं। इसके साथ ही सख्त लहजे में एक तरह की चेतावनी भी लिखी थी कि वेबसाइट बंद करने के आदेश को न मानने पर कानूनी कार्रवाई और 50 करोड़ पाकिस्तानी रुपयों का जुर्माना लगाया जाएगा।
आखिर कौन हैं ये अहमदिया जिनके नाम के साथ तो मुसलमान लगा है लेकिन 98 प्रतिशत मुस्लिम आबादी वाले देश पाकिस्तान में उन्हें खतरा क्यों है? खुद को मुसलमान कहने वाले अहमदिया को आखिर कट्टरपंथी क्यों नहीं मानते हैं मुसलमान? ऐसे तमाम सवाल हैं जिसके बारें में आज आपको बतातें हैं।
सबसे पहले आपको धर्म के आधार पर बने पाकिस्तान के धार्मिक पृष्ठभूमि से अवगत कराते हैं। पाकिस्तान में 95 से 98 प्रतिशत इस्लाम को मानने वाले लोग हैं। यहां के मुसलमान 3 अभिजात में विभाजित हैं जिनमें सुन्नी, शिया और अहमदिया शामिल हैं। आम सुन्नी मुसलमानों का मत हैं कि इस्लाम के अंतर्गत 'अहमदिया' वो भटके हुए लोग हैं जिनका इस्लाम से कोई लेना देना नहीं है और ये अपनी हरकतों से लगातार इस्लाम का नाम खराब कर रहे हैं।
मुख्यतः 19 वीं सदी में आये अहमदिया पंथ की शुरुआत मिर्जा गुलाम अहमद (1835-1908) ने की थी। 19वीं सदी के दौर में भारत में ब्रिटिश शासन ने अपनी जड़े पूरी तरह से जमा ली थी। पंजाब के लुधियाना में जन्में मिर्जा गुलाम अहमद के पूर्वज मिर्जा हादी को मुगल बादशाह जहीररुद्दीन बाबर ने 16वीं शतीब्दी में कई सौ देहातों की जागीर दी थी। 23 मार्च 1889 को मिर्जा गुलाम अहमद ने लुधियाना में हकीम अहमद जान के घर पर पंचायत बुलाई गई और इस पंचायत में अहमदी जमात की नींव रखी गई। इस पंचायत में लोगों से कहा गया कि मोहम्मद आखिरी नबी नहीं हैं, बल्कि मैं खुद नबी हूं। गुलाम अहमद का दावा था कि पैंगंबर मोहम्मद की तरह ही उन्हें अल्लाह का हुक्म मिला है कि वो लोगों से इस बात की बात मनवा लें कि वे नबी हैं और उन्हें जमात बनाने का हुक्म मिला है। गुलाम अहमद के दावे के अनुसार खुदा अब भी जिससे चाहे कलाम करता है। खुदा से बात करने का ये सिलसिला जारी है। कुरान आखिरी शरई किताब है। इसका कोई हुक्म और कोई आयत नहीं। लेकिन गुलाम अहमद के इन दावों को बाकि के मुसलमानों ने खारिज किया। आम मुसलमान हजरत मुहम्मद के अलावा किसी को अपना रसूल नहीं मानते हैं और ऐसे में मिर्जा गुलाम अहमद को अपने को रसूल या फिर रसूल का वारिस कहना आम मुसलमानों को स्वीकार नहीं हुआ। मोहम्मद साहब अल्लाह के आखिरी पैगम्बर थे। उनके बाद न कोई हुआ है और न कोई हो सकता है। इस्लाम की बुनियाद इसी विश्वास पर टिकी है।
इस्लाम की कबूलियत का कलमा है " ला इलाहा इल्लल्लाह, मुहम्मदर्रसूल अल्लाह' यानी अल्लाह के अलावा कोई माबूद नहीं और मोहम्मद अल्लाह के रसूल हैं। अपने शुरूआती दौर में मिर्ज़ा ने पहले स्वयं को नबी घोषित किया था और बाद में उन्होंने अपने चाहने वालों को बताया था कि वो मसीहा हैं जिसे ईश्वर ने लोगों की सेवा के लिए भेजा है। बताया जाता है कि तब भी मिर्जा गुलाम अहमद की इस बात से काफी विवाद हुआ था और तब ही इस्लाम के जानकारों ने उन्हें इस्लाम से खारिज कर दिया था। अहमदिया मुसलमान हजरत मोहम्मद को आखिरी पैगंबर नहीं मानते इसी वजह से सऊदी सरकार ने भी उनकी हजयात्रा पर रोक लगा रखी है।
अहमदियों के खिलाफ दंगा
पाकिस्तान में अहमदिया मुसलमानों के साथ टकराव की घटना लगातार आती रही है जिनमें उनकी मौत भी होती रही। पाकिस्तान का मानना है कि अहमदिया मुसलमान इस्लाम धर्म के मानने वालों को गुमराह कर रहे हैं और एक इस्लामिक देश में गैर इस्लामिक कृत्य पर अंकुश नहीं लगाया गया तो इस्लाम धर्म पर विपरीत असर पड़ेगा। पाकिस्तान में 1953 में पहली बार अहमदियों के खिलाफ दंगे हुए। जब उन दंगों की जांच पड़ताल हुई तो पता चला कि वो कट्टरपंथियों के उकसाने पर किए गए थे। सितंबर 1974 में पाकिस्तानी संविधान में संशोधन किया गया और अहमदी जमात को गैर-मुस्लिम घोषित कर दिया गया। इस दौरान हजारों अहमदिया परिवारों को अपना घर छोड़ने को मजबूर होना पड़ा। 1982 में राष्ट्रपति जिया उल हक ने संविधान में फिर से संशोधन किया। इसके तहत अहमदियों पर पाबंदी लगा दी गई कि वे खुद को मुसलमान भी नहीं कह सकते। इसके साथ ही पैगंबर मोहम्मद की तौहीन करने पर मौत की सजा का प्रावधान कर दिया गया। उनके कब्रिस्तान भी अलग कर दिए गए। और तो और पहले से दफन अहमदियों की कुछ लाशें को कब्रों से निकलवा दिया गया। अहमदियों पर जुल्म का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्हें अस्सलाम अलेकुम कहने पर भी जेल में डाल दिया जाता है। जबकि हमारे यहां तो गौर मुस्लिम भी सलाम कर लेते हैं। 28 मई साल 2010 को पाकिस्तान में तालिबान ने दो अहमदी मस्जिदों को निशाना बनाया। लाहौर की बैतुल नूर मस्जिद पर फायरिंग की गई और ग्रेनेड फेंके गए साथ ही जिस्म पर बम बांधकर आतंकी मस्जिद में घुस गए जिसमें 94 लोग मारे गए। हिंदुस्तान में भी अहमदी जमात पर शिकंजा कसने की कोशिशें हुईं और देवबंद के दारुल-उलूम ने अहमदियों को काफिर कहे जाने वाले उस फतवे की हिमायत की जो मौलाना अहमद रज़ा ने 1893 में जारी करवाया था।
अहमदिया मुस्लिम समुदाय प 168 पन्नों की रिपोर्ट
पिछले वर्ष यूके स्थिल ऑल पार्टी पार्लियामेंट्री ग्रुप ने अहमदिया मुस्लिम समुदाय पर 168 पन्नों की रिपोर्ट में उन पर होते जुल्मों का उल्लेख किया था। द फेथफुल ऑफ द फेथफुल- पाकिस्तान में अहमदिया मुसलमानों के उत्पीड़न और अंतरराष्ट्रीय चरमपंथ के उदय शीर्षक वाली रिपोर्ट में कहा कि भारतीय उपमहाद्वीप के विभाजन और पाकिस्तान के गठन के बाद शांतिप्रिय समुदाय के खिलाफ उत्पीड़न तेज हो गया। रिपोर्ट में कहा गया कि यह पाकिस्तान का इतिहास है। यह 1974 की घटनाओं में समाप्त हुआ जब प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने अहमदिया आंदोलन को पूरी तरह से राज्य प्रायोजित उत्पीड़न में बदल दिया। उन्होंने 1974 के संवैधानिक संशोधन को विशे। रूप से मुस्लिमों को लक्षित करते हुए कानून के उद्देश्यों के लिए मुसलमानों की घोषणा करते हुए अधिनियमित किया।
206 देशों में कई करोड़ अहमदिया
जुल्म की वजह से पलायन कर काफी अहमदियों ने नाॅर्थ इंग्लैंड पलायन किया। यहां सबसे ज्यादा अहमदिया हैं। वहीं मौजूदा दौर में 206 देशों में कई करोड़ अहमदी बताए जाते हैं। पाकिस्तान में अहमदिया मुस्लिमों की संख्या 40 लाख बताई जाती है वहीं भारत में 10 लाख के करीब इनकी आबादी है। नाइजीरिया में 25 लाख और इंडोनेशिया में करीब 4 लाख अहमदिया बताए जाते हैं। पाकिस्तान में जुल्म और ज्यादती सहने के बाद दुनिया के कई देशों में अहमदिया मुस्लिमों ने शरण ली। जिनमें जर्मनी, तंजानिया, केन्या जैसे देश शामिल हैं।
भारत में अच्छी खासी आबादी
भारत में अहमदियों की अच्छी-खासी तादाद है। इनमें से ज्यादातर राजस्थान, ओडिशा, हरियाणा, बिहार, दिल्ली, उत्तर प्रदेश तथा पंजाब के कुछ इलाके में रहते हैं। भारत सरकार इन्हें मुस्लिम मानती है। लेकिन दारुल उलूम देवबंद अहमदियाओं को गैर मुसलमान मानता है और मुस्लिम पर्सनल लाॅ बोर्ड में कोई अहमदियाओं सदस्य नहीं हो सकता। 1992 में भारत में अहमदिओं के खिलाफ किताबें बांटी गई। उन किताबों में अहमदियों को वाजिब उल कत्ल कहा गया। यानी उनका कत्ल कर सकते हैं और कोई गुनाह नहीं होगा। 14 जून 1997 को दिल्ली में ऑल इंडिया मजलिस ए तहफ्फुज खत्म ए नबूव्वत के बैनर तले एक प्रेस काॅन्फ्रेंस हुई और अहमदियों का बहिष्कार करने का ऐलान हुआ।
नया पाकिस्तान का नारा देकर पाकिस्तान की सत्ता पर काबिज हुए इमरान खान की सरकार ने भी कट्टवादियों के आगे घुटने टेके। पाकिस्तान में अहमदियाओं को निशाना बनाना आम है। अहमदिया मुस्लिमों के प्रति द्वेष ऐसा देखने को मिला जब पाकिस्तान के इकलौते नोबेल पुरस्कार विजेता अबदुस सलाम जो अहमदिया समुदाय से आते थे। उनकी कब्र पर लिखी इबारतों से मुस्लिम शब्द मिटा दिया गया। बता दें कि अब्दुस सलाम को भौतिक विज्ञान में योगदान के लिए नोबेल पुरस्कार दिया गया था।