निर्भया के दोषियों को फाँसी से देश की बेटियों का मिला नया आत्मविश्वास

मौत से चंद घंटों पहले निर्भया के दोषियों ने जिस तरह अपने वकील के माध्यम से आधी रात को हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई वह दर्शाता है कि उन्हें हर वो मौका प्रदान किया गया जो संविधान के मुताबिक उन्हें मिलना चाहिए था।





देश भले इस समय कोरोना वायरस से लड़ रहा हो लेकिन उन बड़े वायरसों जिन्होंने निर्भया को दर्दनाक मौत दी थी, कानून ने उन्हें फाँसी पर लटका दिया। साल 2012 में राजधानी दिल्ली में हुए निर्भया गैंगरेप कांड में करीब सवा सात साल के बाद इंसाफ हुआ। पूरा देश रात भर जागता रहा और सुबह साढ़े पांच बजे तक का इंतजार करता रहा कि कब निर्भया की आत्मा को शांति देने वाली, देश की बेटियों को हौसला देने वाली, देश के कानून पर विश्वास को और प्रगाढ़ कर देने वाली खबर आयेगी। निर्भया को न्याय दिलाने की लड़ाई इतनी आसान नहीं थी, पिछले तीन महीने से और खासकर फाँसी से पहले देर रात को जिस प्रकार निर्भया के वकील कभी हाईकोर्ट और कभी सुप्रीम कोर्ट तक गुहार लगाते रहे और कानून को उलझाने का षड्यंत्र करते रहे वह सब काम नहीं आया और 20 मार्च की सुबह लोगों के लिए बड़ी खुशखबरी लाई।

 

निर्भया के दोषियों ने जो किया उसकी सजा तो उन्हें मिल गयी लेकिन यह भी सुनिये की सजा का समय नजदीक आते ही उनकी रूह कांपने लगी थी और वह रोने लगे थे, गिड़गिड़ाने लगे थे लेकिन शायद उन्हें निर्भया का वह रोना, गिड़गिड़ाना और तड़प-तड़प कर दम तोड़ना याद नहीं रहा होगा। बताया गया है कि फांसी से ठीक पहले निर्भया के चारों दोषियों में से विनय की हालत सबसे खराब थी। बताया गया है कि आखिरी लम्हों में वह बचने की हर कोशिश करता दिखा। जेल के अधिकारियों के मुताबिक वह फूट-फूट कर रो रहा था, पैर पकड़ रहा था, गिड़गिड़ा रहा था। फांसी के लिए ले जाते समय वह वहां मौजूद अधिकारियों से गुहार लगाता रहा कि उसे उसके वकील से मिलवा दो क्योंकि उसे कहीं ना कहीं उम्मीद थी कि उसका वकील उसे फांसी से बचा लेगा।

 


निर्भया के दोषियों के वकील ने जिस तरह अपनी तिकड़मों के चलते कानून को उसकी पेचिदगियों में उलझाया और तीन डेथ वारंट टलवाने में कामयाब रहे उससे ही दोषियों के मन में यह आत्मविश्वास नजर आ रहा था कि वह मौत को फिर मात दे देंगे लेकिन ऐसा हुआ नहीं। दोषियों के वकील भले इस बात पर गर्व महसूस करें कि उन्होंने मामले को इतना टलवाया लेकिन इसका दूसरा पहलू यह है कि पूरी दुनिया ने भारतीय कानूनों की निष्पक्षता को देखा। पूरी दुनिया ने देखा कि आरोपी कितने गंभीर से गंभीर मामलों का दोषी क्यों ना हो, उसे भी बचाव का और अपना पक्ष रखने का पूरा मौका दिया जाता है। मौत से चंद घंटों पहले निर्भया के दोषियों ने जिस तरह अपने वकील के माध्यम से आधी रात को हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई वह दर्शाता है कि उन्हें हर वो मौका प्रदान किया गया जो संविधान के मुताबिक उन्हें मिलना चाहिए था। 

 

निर्भया के दोषियों को फाँसी दिये जाने के बाद तिहाड़ जेल के बाहर जिस तरह लोगों ने जश्न मनाया, 'निर्भया अमर रहे' और 'भारत माता की जय' के नारे लगाये वह दर्शाता है कि जनभावना का सम्मान हुआ है। निर्भया के साथ हुए दर्दनाक हादसे के बाद जिस तरह सड़कों पर भीड़ थी वैसी ही भीड़ आज देश के विभिन्न शहरों में देखने को मिल रही है लेकिन पहली भीड़ दोषियों को मृत्युदंड देने की मांग के लिए आंदोलन करने वालों की थी और दूसरी भीड़ निर्भया को इंसाफ मिलने का जश्न मनाने के लिए थी। रात भर से महिलाएं जिस तरह तिहाड़ जेल के बाहर खड़ी रहीं और सुबह जैसी भीड़ जुटी वह दर्शाता है कि महिलाओं में नया आत्मविश्वास जगाने के लिए निर्भया को जल्द से जल्द इंसाफ मिलना बेहद जरूरी हो गया था। हैदराबाद रेप और मर्डर घटना के बाद दोषियों का जो एनकाउंटर हुआ था उसको जनता ने सही ठहराया था, यदि निर्भया के दोषियों का मामला और टलता तो यह कानून के प्रति अविश्वास बढ़ाता।

 


बहरहाल, निर्भया की माँ ने सही कहा है कि अब महिलाएं सुरक्षित महसूस करेंगी। अब कार्यपालिका और न्यायपालिका को भी चाहिए कि कानून में ऐसे बदलाव करें ताकि निर्भया के वकील ने जिस तरह कानून को उलझाया वैसा कार्य कोई दूसरा नहीं कर सके और ऐसे जघन्य अपराधों के दोषी को दया याचिका दाखिल करने का अधिकार भी नहीं मिलना चाहिए।