1947 को देश आजादी ने साथ बंटवारा का दंश भी झेला। विभाजन के बाद कई महीनों तक दोनों नए देशों के बीच लोगों की आवाजाही हुई। भारत से कई मुसलमानों ने डर और अपने मुल्क की चाहत में पलायन किया तो पाकिस्तान से हिन्दुओं और सिखों ने अपना घर छोड़ दिया।
कश्मीर में हुए बड़े नरसंहार
'यह रैन बसेरा है, घर नहीं। हमारा सिर्फ कत्ल नहीं हुआ, हमारा वजूद मिटाया गया है। आप ही बताएं, जब किसी पेड़ को उखाड़कर दूसरी जगह लगाया जाए तो क्या होगा। इसलिए हम अपनी जड़ों (कश्मीर) में लौटना चाहते हैं। यह तभी होगा जब किसी के दिल में इस्लामिक आतंकवाद का खौफ न हो, रिवर्सल ऑफ जिनोसाइड हो। हमें रिलीफ नहीं चाहिए। सभी विस्थापित कश्मीरी पंडितों को वादी में किसी एक ही जगह बसाया जाए, ताकि हम सुरक्षा-शांति और विश्वास की सांस ले सकें।' यह बात जम्मू-कश्मीर के हालात का जायजा लेने आए 15 देशों के राजनयिकों के समक्ष एक विस्थापित कश्मीरी पंडित ने जरूर कही, लेकिन यह दर्द तीन दशकों से अपने ही देश में शरणार्थी बनकर रह गए कश्मीरी पंडित समुदाय के प्रत्येक नागरिक का था।