भारतीय मुसलमान भी तो मलेशिया, इंडोनेशिया के मुसलमानों से सीख लेकर मलय संस्कृति की तरह भारतीय संस्कृति पर गर्व कर सकते थे। वह भी इंडोनेशिया मुसलमानों की तरह राम को पूर्वज मान सकते थे, परन्तु उनको राममन्दिर के खिलाफ खड़ा कर दिया गया।
भारतीय मुसलमान भी तो मलेशिया, इंडोनेशिया के मुसलमानों से सीख लेकर मलय संस्कृति की तरह भारतीय संस्कृति पर गर्व कर सकते थे। वह भी इंडोनेशिया मुसलमानों की तरह राम को पूर्वज मान सकते थे, परन्तु उनको राममन्दिर के खिलाफ खड़ा कर दिया गया। उनको अरबों, तुर्कों के साथ जोड़ा गया। दरअसल, मुस्लिम समाज को भारतीयता के साथ जोड़े रखने की कोशिश ही नहीं हुई। राजनैतिक जरूरतों ने सांझी संस्कृति ही विकसित नहीं होने दी। आजादी से पहले इस बिखराव के लिए हम अंग्रेज सरकार, शाह वलीउल्ला, सैयद अहमद, अलामा इकबाल, मुहम्मद अली जिन्ना को दोषी मान सकते थे परन्तु आजादी के बाद तो हम ही अपने भाग्य विधाता थे। भारत और विश्व इतिहास पर पुस्तकें लिखते हुए नेहरू जी को उन वतनप्रस्त मुसलमानों जैसे कि हाकिम खान, इब्राहिम गारदी जो महाराणा प्रताप और मराठों की फौजों के साथ कन्धे से कन्धा मिला कर लड़ते हुए शहीद हुए, की याद नहीं थी। दारा शिकोह को उन्होंने शायद पढ़ा नहीं होगा। भारतीय संस्कृति-साहित्य का हिस्सा बन चुके कबीर, रसखान, रहीम, फरीद, दादू को उन्होंने कितना जाना, यह वो ही बता सकते थे। पता नहीं उन्होंने अबदुर रहीम खानखाना का यह दोहा 'जैसी रज मुनि पत्नी तरी, सो ढूंढ़त गजरार' कभी सुना था या नहीं। उन्होंने मुसलमानों में भारतीय इतिहास, संस्कृति और राष्ट्रीयता का भाव जागृत करने के लिए कुछ नहीं किया, चाहते तो मुस्लिम समाज को राष्ट्रीय एकता की सबसे मजबूत कड़ी बन सकती थी। दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हुआ, हुआ होता तो आज शाहीन बाग में जिन्ना वाली आजादी न मांगी जा रही होती, न ही तीन तलाक पर रोक के विरोध में कोई आस्तीन चढ़ाता व राममन्दिर निर्माण में कोई विरोधियों की कठपुतली बनता।
अपने गणतन्त्र में गुणात्मक सुधार के लिए अपने पूर्वजों के साथ-साथ दुनिया के विभिन्न हिस्सों में चल रहे सफल लोकतन्त्र से भी सीखना होगा। सभी समाजों व देशों की अच्छी बातों का अपने भीतर समावेश करना होगा और अपनी बुराइयों को पहचान कर उससे किनारा करना होगा। तभी गणतन्त्र सर्वगुणयुक्त तन्त्र बनेगा और दुनिया के लिए आदर्श। गणतन्त्र दिवस की ढेरों शुभकामनाओं के साथ, जयहिन्द।