कांग्रेस और राकांपा ''तेल देखो और तेल की धार देखो'', वाली उक्ति को ही चरितार्थ कर रहे हैं। यह दोनों दल यह समझ चुके हैं कि शिवसेना येनकेन प्रकारेण अपना मुख्यमंत्री बनाने की ही राजनीति करने पर उतारू हो गई है।
कांग्रेस और राकांपा 'तेल देखो और तेल की धार देखो', वाली उक्ति को ही चरितार्थ कर रहे हैं। यह दोनों दल यह समझ चुके हैं कि शिवसेना येनकेन प्रकारेण अपना मुख्यमंत्री बनाने की ही राजनीति करने पर उतारू हो गई है। ऐसे में यह भी कहा जा रहा है कि राकांपा और कांग्रेस की ओर से एक बड़ी राजनीतिक चाल भी चली गई है, वह यही कि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को कमजोर किया जाए। जिसके लिए उन्होंने शिवसेना को राजग से दूर होने की भी राजनीति की है। हालांकि केन्द्र की मोदी सरकार में शिवसेना के एक मात्र मंत्री के रूप में शामिल रहे अरविन्द सावंत से यह कहकर त्याग पत्र दिलवा दिया कि शिवसेना अब राजग का हिस्सा नहीं है, लेकिन राकांपा की ओर से कहा जा रहा है कि शिवसेना की ओर से इसकी अधिकारिक घोषणा नहीं की गई है। ऐसा सवाल इसलिए भी उठ रहा है, क्योंकि अभी हाल ही में शिवसेना की ओर से ही ऐसा सवाल उठाया गया है कि शिवसेना को राजग से निकालने वाली भाजपा कौन होती है। इसका आशय यही निकाला जा रहा है कि शिवसेना खुद अभी अपने आपको राजग का हिस्सा ही मान रही है।
महाराष्ट्र में सबसे बड़ा पेंच राकांपा के शरद पवार के बयानों के कारण भी निर्मित हुआ है। उन्होंने अभी हाल ही में कहा है कि न्यूनतम साझा कार्यक्रम नहीं बन पाने की स्थिति में ही देर हो रही है। दूसरी तरफ शिवसेना संबंधी सवाल पर वे यह भी कह रहे हैं कि शिवसेना के बारे में उन्हें कुछ नहीं मालूम। इसलिए यही कहा जा रहा है कि अभी मामला पूरी तरह से खटाई में ही है। अभी सरकार बनने की किसी भी प्रकार की कोई स्थिति दिखाई नहीं दे रही है। यह सवाल इसलिए भी खड़ा हो रहा है कि शिवसेना की ओर से स्पष्ट रूप से कहा जा रहा है कि दिसम्बर तक सरकार बन जाएगी। इसका मतलब यही है कि तीनों दलों में बहुत बड़ा राजनीतिक पेच फंसा हुआ है। इसका हल कैसे निकलता है, अब यही देखना बाकी है।