इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 30 सितंबर, 2010 के फैसले में 2.77 एकड़ विवादित भूमि तीन पक्षकारों-सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला- के बीच बांटने के आदेश को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी गयी थी।
नयी दिल्ली। मुगल साम्राज्य, औपनिवेशिक शासन... और फिर स्वतंत्रता के बाद भी दशकों तक अनसुलझा रहा अयोध्या राम जन्म भूमि विवाद आखिरिकार नौ नवम्बर 2019 को उच्चतम न्यायालय के ऐतिहासिक फैसले के बाद समाप्त हो गया।
मुगल बादशाह बाबर के कमांडर मीर बाकी ने बाबरी मस्जिद का निर्माण 1528 में कराया था। यह पाया गया कि यह स्थल दशकों से निरंतर संघर्ष का एक केन्द्र रहा और 1856-57 में, मस्जिद के आसपास के इलाकों में हिंदू और मुसलमानों के बीच कई बार दंगे भड़क उठे।उच्चतम न्यायालय ने कहा कि दो धार्मिक समुदायों के बीच कानून-व्यवस्था और शांति बनाए रखने के लिए, ब्रिटिश सरकार ने परिसर को भीतरीऔर बाहरी बरामदे में विभाजित करते हुए छह से सात फुट ऊंची ग्रिल-ईंट की दीवार खड़ी की। भीतरी बरामदे का इस्तेमाल मुसलमान नमाज पढ़ने के लिए और बाहरी बरामदे का इस्तेमाल हिंदू पूजा के लिए करने लगे । इस विवाद में पहला मुकदमा 'राम लला' के भक्त गोपाल सिंह विशारद ने 16 जनवरी, 1950 को दायर किया था। इसमें उन्होंने विवादित स्थल पर हिन्दुओं के पूजा अर्चना का अधिकार लागू करने का अनुरोध किया था। उसी साल, पांच दिसंबर, 1950 को परमहंस रामचन्द्र दास ने भी पूजा अर्चना जारी रखने और विवादित ढांचे के मध्य गुंबद के नीचे ही मूर्तियां रखी रहने के लिये मुकदमा दायर किया था। लेकिन उन्होंने 18 सितंबर, 1990 को यह मुकदमा वापस ले लिया था।