मुझे गर्व है कि मैं उन 133 करोड़ लोगों में से एक हूं जिन्होंने दुनिया के देशों के सामने सांप्रदायिक सौहार्द की जो मिसाल पेश की है विश्व के इतिहास में ऐसी मिसाल मिलना लगभग दुर्लभ है। मेरा उद्देश्य कहीं भी देश की सर्वोच्च अदालत के फैसले की विवेचना करना नही है। देश की सर्वोच्च अदालत के मुख्य न्यायाधीश सहित पांच न्यायाधीशों ने जिस तरह से एकमत होकर फैसला दिया है और फैसले का युक्तियुक्त विश्लेषण किया है वह विश्लेषकों के लिए अलग मुद्दा हो सकता है। पर जिस तरह से सैंकड़ों सालों के विवादास्पद मामले के निर्णय आने के बाद देशवासियों ने सांप्रदायिक सौहार्द का परिचय दिया है वह काबिले तारीफ है। यही कारण है कि न्याय के प्रति देशवासियों को आज भी पूरा विश्वास रहा है। हमारे देश में पंच परमेश्वरों को सम्माननीय माना जाता रहा है। उनके निर्णयों को बिना ना नुकर के स्वीकारा जाता रहा है। यह माना जाता रहा है कि न्याय की कुर्सी पर बैठने वाला व्यक्ति सभी विवादों से परे होता है। दरअसल राममंदिर−बाबरी मस्जिद विवाद पर देश में राजनीतिक भूचाल का लंबा इतिहास रहा हैं। कारसेवा और उसके बाद देशभर में सांप्रदायिक दंगों का लंबा सिलसिला हम झेल चुके हैं। विवाद का सर्वमान्य हल निकालने के भी हर संभव प्रयास किए गए। दशकों तक राजनीतिक सहित सभी संभावित मंचों पर समाधान के प्रयास किए गए पर सभी प्रयास विफल रहे। स्थिति यहाँ तक हो गई कि मर्यादा पुरुषोत्तम राम को लेकर पक्ष विपक्ष में गंभीर राजनीतिक विवाद छिड़ गया। आए दिन इस पर बवाल होने लगे। देश की गंगा−जमुनी संस्कृति पर आए दिन ग्रहण लगने लगा पर देश के प्रबुद्ध और आम लोगों ने इस गंगा-जमुनी संस्कृति को संजोए रखने के हर संभव प्रयास जारी रखे।
इसमें कोई दो राय नहीं कि सर्वोच्च अदालत के फैसले की संभाव्यता को देखते हुए केन्द्र व उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश सहित देश में विभिन्न दलों द्वारा शासित प्रदेशों की सरकारों ने शांति और व्यवस्था बनाए रखने के सराहनीय कदम उठाए और यही कारण रहा कि देश में कहीं भी सांप्रदायिक सौहार्द बिगड़ने का समाचार नहीं आया। हाँ, ऐसे संवेदनशील मुद्दों पर यदि टीवी चैनलों द्वारा उत्तेजक या सनसनीखेज बनाने के प्रयास किए जाते हैं तो यह अपने आप में गंभीर है। मेरा मानना है कि ऐसे संवेदनशील मुद्दों पर टीवी चैनलों को भी पैनल डिस्कशन रखने की पंरपरा को तोड़ना होगा। साफ कारण है कि जो भी डिस्कशन में आएगा उसकी मानसिकता से आप कैसे पहले से संतुष्ट हो सकते हैं। एक जरा-सी उत्तेजकता के दुष्परिणामों को भी समझना होगा। जब हम यह जानते हैं कि यह संवेदनशील और सांप्रदायिकता से जुड़े मुद्दे हैं तो ऐसे विषय में सामान्य पत्रकारिता धर्म निभाते हुए वाद−विवाद या आलोचना प्रतिलोचना से बचने के प्रयास किए जाने चाहिए। क्योंकि यह हमें नहीं भूलना चाहिए कि मीडिया का भी देश और देशवासियों के प्रति दायित्व होता है और यह अच्छी बात है कि मीडिया ने अपनी जिम्मेदारी को समझा है पर कभी-कभी टीआरपी के चक्कर में या अतिउत्साह या दूसरे की देखादेखी डिस्कशन आदि के नकारात्मक प्रभाव से नकारा नहीं जा सकता। बल्कि ऐसे मामलों में तथ्यात्मक न्यूज तक सीमित रहा जाए तो अधिक उचित होता है। खैर देशवासियों ने जिस तरह के सौहार्द का परिचय दिया है वह निश्चित रूप से राम रहीम और गंगा-जमुनी संस्कृति का देश और देशवासी ही दे सकते हैं।