हकीकत यही है कि अयोध्या विवाद अब तक नहीं सुलझा था तो इसके लिए सबसे अधिक कांग्रेस जिम्मेदार है क्योंकि उसने देश पर दशकों तक मजबूती के साथ देश पर राज किया था और इस मामले को लटकाने भटकाने के हरसंभव प्रयास भी किये।
अयोध्या विवाद अब इतिहास के पन्नों में जरूर सिमट कर रह जाएगा, लेकिन सुप्रीम कोर्ट का फैसला कई अहम सवाल भी खड़ा कर गया है। सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि देश की सियासी और सामाजिक चूलें हिला देने वाले इस विवाद को सुलझाने में आजादी के बाद 72 साल क्यों लग गए ? सवाल यह भी है कि मोदी सरकार की तरह केन्द्र की पूर्ववर्ती सरकारों ने ऐसी इच्छाशक्ति क्यों नहीं दिखाई, जिससे अयोध्या विवाद को सुलझाया जा सकता था ? कुछ लोग कह सकते हैं कि ऐसा नहीं कहा जा सकता है कि अयोध्या विवाद सुलझाने का कोई प्रयास नहीं किया गया हो, लेकिन हकीकत यही है कि अयोध्या विवाद अब तक नहीं सुलझा था तो इसके लिए सबसे अधिक कांग्रेस जिम्मेदार है क्योंकि उसने दशकों तक मजबूती के साथ देश पर राज किया था, जबकि अन्य दलों की जब भी केन्द्र में सरकारें बनीं तो उनको वह मजबूती नहीं मिल पाई, जिस मजबूती के साथ कांग्रेस की सरकारें चला करती थीं। जनता पार्टी की सरकार जरूर अपवाद है, लेकिन पूर्ण बहुमत से सरकार बनाने के बाद भी जनता पार्टी की सरकार अंर्तिवरोधाभास के चलते अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाई थी। यहां तक कि मोदी भी अपने पहले कार्यकाल में अयोध्या विवाद सुलझाने की हिम्मत नहीं जुटा पाए थे, क्योंकि एक तो संख्या बल के हिसाब से वह आज जितना मजबूत नहीं थे तो दूसरा राज्यसभा में भी उसका (मोदी सरकार) बहुमत नहीं था।
बहरहाल, आज यदि लगभग सभी विपक्षी दल और नेता अयोध्या पर उच्चतम न्यायालय के फैसले का समर्थन कर रहे हैं तो यह नहीं मान लेना चाहिए कि उन्हें अपनी पुरानी गलती का अहसास हो गया है, हकीकत यह है कि अब कांग्रेस, सपा−बसपा जैसे दल समझ चुके हैं कि अगर मुस्लिम वोट बैंक के सहारे सत्ता हासिल की जा सकती है तो बहुसंख्यक हिन्दू वोटर भी ऐसे प्रयासों के खिलाफ एकजुट हो सकते हैं जिसकी परिणिति मोदी के प्रधानमंत्री बनने के रूप में होती है।