यदि शिवसेना, राकांपा और कांग्रेस मिलकर सरकार बना लें तथा भाजपा बाहर बैठी रहे तो उक्त तीन पार्टियों का भट्ठा बैठे बिना नहीं रहेगा। कोई ईश्वरीय चमत्कार ही इस उटपटांग सरकार को पांच साल तक चला सकता है।
भारतीय राजनीति के घोर अधःपतन का घिनौना रूप किसी को देखना हो तो वह आजकल के महाराष्ट्र को देखे। जो लोग अपने आप को नेता कहते हैं, वे क्या हैं ? वे सिर्फ कुर्सीदास हैं। कुर्सी के लिए वे किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं। शिव सेना जैसी पार्टी कांग्रेस से हाथ मिलाकर सरकार बनाने के लिए उतावली हो गई है। बाल ठाकरे से लेकर आदित्य ठाकरे ने कांग्रेस की कब्र खोदने में कौन-कौन-सी कुल्हाड़ियां नहीं चलाई हैं, उस पर उन्होंने कितनी बार नहीं थूका है लेकिन अब उसी कांग्रेस के तलुवे चाटने को आज शिव सेना बेताब है। बालासाहब ठाकरे स्वर्ग में बैठे-बैठे अब क्या सोच रहे होंगे, अपने उत्तराधिकारियों के बारे में ?
महाराष्ट्र ही नहीं, सारा देश यह नजारा देखकर चकित है। लोग यह समझ नहीं पा रहे हैं कि ये हमारे नेता हैं कि गिरगिटान हैं। उनके कोई आदर्श, कोई सिद्धांत, उनकी कोई नीति, कोई परंपरा, कोई मर्यादा भी होती है या नहीं ? यह बात सिर्फ शिव सेना पर ही लागू नहीं होती। भाजपा ने इस चुनाव में क्या किया है ? दर्जनों कांग्रेसियों को रातोंरात भाजपा में ले लिया है। उनमें से कुछ जीते भी हैं। वे कुर्सी के चक्कर में इधर आ फंसे। अब वे क्या करेंगे ? वे दल-बदल करने की स्थिति में भी नहीं हैं। वे मन-बदल पहले ही कर चुके। महाराष्ट्र में शिव सेना, राकांपा और कांग्रेस की सरकार चाहे बन ही जाए लेकिन उसे पता है कि केंद्र में भाजपा की सरकार है। वह क्या उसे चलने देगी ? पता नहीं, ये तीनों पार्टियां क्या सोचकर सांठ-गांठ कर रही हैं ?