उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के हौसलों को उड़ान नहीं मिल पा रही है। प्रियंका वाड्रा गांधी की तमाम कोशिशों के बाद भी कांग्रेसी लगातार मिलती हार से उबर नहीं पा रहे हैं। कांग्रेस के छोटे−बड़े नेताओं ने मायूसी की चादर ओढ़ रखी है तो कार्यकर्ताओं ने भी हवा का रूख भांप कर अपने आप को 'समेट' लिया है। कांग्रेस के सामने समस्या यह है कि उत्तर प्रदेश कांग्रेस में जान फूंकने वाले उसके तमाम दिग्गज नेता उम्र के उस पड़ाव पर पहुंच गए हैं, जहां से वह कांग्रेस के पक्ष में बयानबाजी से अधिक कुछ नहीं कर सकते हैं। इन बुजुर्ग नेताओं के पास न तो अब इतनी इच्छाशक्ति बची है कि वह जनता के बीच जाकर कांग्रेस की विचारधारा को प्रचार−प्रसार कर सकने की क्षमता है और ना ही इन नेताओं के पास किसी बड़े आंदोलन को लम्बे समय तक चलाने की शारीरिक ताकत है। रही सही कसर राहुल गांधी के अमेठी से वानयाड पलायन ने पूरी कर दी। वहीं कांग्रेस अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश की रायबरेली संसदीय सीट से लोकसभा चुनाव जीतने के बाद सोनिया गांधी भी राज्य में कभी नहीं दिखाई देती हैं।
यूपी कांग्रेस की प्रमुख और बुजुर्ग लीडरशिप की बात की जाए तो कभी दिग्गज सलमान खुर्शीद, राज बब्बर, श्रीप्रकाश जायसवाल, पीएल पुनिया, राशिद अलवी, प्रमोद तिवारी, जफर अली नकवी, निर्मल खत्री, रतना कुमारी सिंह, प्रदीप कुमार जैन, आरपीएन सिंह, पूर्व मंत्री रामलाल राही, पूर्व विधानमंडल दल के नेता प्रदीप माथुर, अजय राय, जितिन प्रसाद, अनु टंडन, कांग्रेस विधानमंडल दल के नेता अजय कुमार 'लल्लू' और राजेश मिश्रा आदि जनाधार वाले नेता चुनावी बाजी पलटने की हैसियत रखते थे, लेकिन अब इसमें से कई बढ़ती उम्र के कारण तो कुछ शीर्ष नेतृत्व के ढीलेपन के चलते घरों में कैद होकर रह गए हैं। इसी प्रकार से दिग्गज कांग्रेस नेता संजय सिंह ने पार्टी छोड़ दी है तो आम चुनाव के समय जितिन प्रसाद के भी पार्टी छोड़ने की चर्चा जोर-शोर से चल चुकी है। आज की तारीख में उत्तर प्रदेश कांग्रेस की पहचान इमरान मसूद जैसे विवादित नेता बने हुए हैं जो मोदी के बारे में विवादित बयान देते रहते हैं और गांधी परिवार चंद मुस्लिम वोटों के लिए ऐसे नेताओं को संरक्षण देता है।
प्रियंका के निर्देश पर कांग्रेसियों ने एक−एक सांकेतिक जुलूस तो निकाल दिया लेकिन उसके बाद हस्ताक्षर अभियान को लेकर पार्टीजनों ने कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। यूपी की बात तो दूर लखनऊ तक में प्रियंका के आह्वान पर कहीं कोई माहौल नजर नहीं आया। इतने गंभीर विषय पर भी जनता को कांग्रेस नहीं जोड़ सकी।