जब देश के कई शहरों और सड़कों के नाम तब्दील किए जा रहे हैं तब राजधानी कैसे बचती? संसद में दिल्ली के नाम पर भी चर्चा शुरू हुई है, ऐसे में जानिए कि असल में शहर का नाम क्या था.. और जो आज है वो कैसे पड़ा?
दिल्ली में आज भीख भी मिलती नहीं उन्हें, था कल तलक दिमाग़ जिन्हें ताज़-ओ-तख़्त का
ये शेर है मीर तक़ी मीर का जो शायद उन सल्तनतों का ज़िक्र कर रहे थे जिन्होंने दिल्ली पर हुकूमत की और फिर इसी दिल्ली की मिट्टी में मिस्मार हो गईं. ये तथ्य है कि जिसने भी हिंदुस्तान के दिल कहे जानेवाले इस शहर पर राज किया उसी ने नई शक्ल और नया नाम अता किया.
अब देश की संसद में बात निकली है दिल्ली को मुकम्मल नाम देने की. मुकम्मल इसलिए क्योंकि बकौल राज्यसभा सांसद विजय गोयल के शहर का नाम दिल्ली और डेल्ही कहा जाता है जिससे एक भ्रम की स्थिति बनी हुई है. वो चाहते हैं कि कोचीन को जिस तरह कोच्चि बनाया गया, गोहाटी बदलकर गुवाहाटी हो गया, बॉम्बे परिवर्तित होकर मुंबई बना, इंदूर को इंदौर बोला जाने लगा, पूना भी पुणे किया गया वैसे ही न्यू डेल्ही पूरी तरह खत्म हो जाए और शहर का एक ही नाम हर जगह लिखा-बोला जाए जो हो- दिल्ली.
इसके पीछे उनका एक तर्क था. जो कुछ यूं था- दिल्ली का नाम कहां से आया ये निश्चित नहीं है लेकिन लोकप्रिय विश्वास कहता है कि राजा दिल्लू के नाम पर शहर का नाम पड़ा जो प्राचीन मौर्य साम्राज्य के उत्तराधिकारी थे. उन्होंने बताया कि कुछ इतिहासकार शहर के नाम का जुड़ाव 'दहलीज़' शब्द से बताया करते हैं, क्योंकि गंगा के मैदान की ओर जाने के लिए ये शहर दहलीज़ की मानिन्द ही है. अब गोयल साहब निष्कर्ष रूप में कहते हैं कि शहर का नाम वो हो जिससे इसकी संस्कृति और इतिहास झलकता हो और ऐसा नाम डेल्ही नहीं (वैसे इतिहास तो इसका भी है, जो आगे लिखा जाएगा) दिल्ली है. खुद ही उन्होंने ज़ाहिर किया कि वो इंद्रप्रस्थ या हस्तिनापुर नाम के चक्कर में नहीं पड़ रहे बल्कि वो बस इस वक्त इतना चाहते हैं कि शहर के नाम के हिज्जे एक ही हों. (जो वो हिंदी में दिल्ली और अंग्रेज़ी में Dilli चाहते हैं)
दरअसल जिसे आज आप-हम और दुनिया न्यू डेल्ही के नाम से जानते हैं उस नाम की नींव 1926 में पड़ी जब अंग्रेज़ी साम्राज्य ने भारत में अपनी राजजधानी के लिए दिल्ली को चुना. ऐसा नहीं कि इस नाम को पहली बार यूं ही चुना गया हो, बल्कि ये तो कई विकल्पों में से एक था. आपके मन में अब सवाल उठा होगा कि न्यू डेल्ही के अलावा अंग्रेज़ों ने शहर के लिए क्या-क्या नाम सोचे होंगे? ये नाम थे- इंपीरियल डेल्ही, रायसीना और डेल्ही साऊथ.
जब अंग्रेज़ों ने शहर का नामकरण किया उससे 13 साल पहले एक सज्जन के दिमाग में वही बात उभरी जो आज विजय गोयल कह रहे हैं. उन जनाब ने साल 1913 में तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड हार्डिंग को लिखा कि ब्रिटिश ज़्यादातर डेल्ही बोला करते हैं जो गलत है. तथ्य ये है कि नाम दिल्ली या देहली है.
दिल्ली के इतिहास पर नज़र रखनेवालीं स्वपना लिडिल का कहना है कि इस खत का जवाब हार्डिंग ने ये लिखकर दिया कि भले ही Delhi गलत स्पेलिंग और उच्चारण है लेकिन सालों से ब्रिटिश लोगों द्वारा इसका उपयोग ही इसे पवित्र बनाता है. उनका जवाब इस सिलसिले में आखिरी था. इतिहास तो ऐसा ही बताता है, क्योंकि फिर दशक भर बाद डेल्ही ही न्यू डेल्ही बना जो आजतक चलन में है.
शहर के नाम की दास्तान पर से कुछ धूल 84 साल के उर्दू लेखक शम्सुर्रहमान फारुकी भी साफ करते हैं. बकौल फारुकी साहब ये माना जाता है कि एक वक्त इस शहर पर राजा ढिल्लू का शासन था जिन्होंने अपने नाम पर ही रियासत का नाम रख दिया. ये भी माना जाता है कि इस नाम का कोई गांव था जिस पर बाद में शहर का नामकरण हो गया. ग्यारहवीं सदी में देहली और दिल्ली शब्द का प्रयोग तत्कालीन लेखन में हुआ. उनका कहना है कि दिल्ली और देहली का इस्तेमाल समानांतर होता रहा लेकिन शायरों ने ईरानी प्रथा का अनुसरण करते हुए अपने नाम के पीछे शहर का नाम लगा लिया जिससे उपनाम उभरा- देहलवी.
यहां तक कि अमीर खुसरो को भी 13वीं सदी में अमीर खुसरो देहलवी के तौर पर जाना गया. आगे 14वीं सदी के मशहूर सूफी संत नसीरुद्दीन चिराग ने भी अपने नाम के साथ देहलवी लगाया. जिस सल्तनत ने शहर पर राज किया उसे देहली सल्तनत के नाम से पहचान मिली. फारुकी कहते हैं कि जो नाम सही था वो देहली है लेकिन बोलचाल में उसे दिल्ली कहा जाता रहा. खुद उनके दादा ने अपने नाम के साथ देहलवी लगाया ताकि शहर से उनकी पीढ़ी का नाता ज़ाहिर होता रहे.
प्रोफेसर नारायणी गुप्ता को बात को विस्तार देती हैं. उनका कहना है कि दिल्ली एक बड़ा इलाका है जिसमें पुराने किले- किला राय पिथौरा, सिरी, तुगलकाबाद, फिरोज़शाह कोटला, दीनपनाह या किला-ए-मुबारक (लाल किला) खड़े हैं, साथ ही इसमें फिरोज़ाबाद, शाहजहानाबाद, नई दिल्ली जैसे छोटे इलाके भी आते हैं. वो बताती हैं कि दीवारों से घिरे किले में दरवाज़ों और कस्बों के नाम भी देहली से जुड़े दिए गए जैसे पूरे हिंदुस्तान में हर किले में देहली दरवाज़ा मिलेगा. यहां तक कि शाहजहानाबाद में भी देहली गेट है जो महरौली की ओर है जो 17वीं सदी में देहली कहलाता था.
अगर बात करें इंद्रप्रस्थ नाम की जिसे दिल्ली का ही एक नाम कहा जाता है तो उसके बारे में सर सैयद अहम खान की एक किताब बताती है. उसमें लिखा है कि दरीबे के खूनी दरवाज़े से लेकर पुराना किला तक इंद्रप्रस्थ का क्षेत्र था. हालांकि इंद्रप्रस्थ का कोई निशान अब नहीं मिलता लेकिन शाहजहानाबाद के दक्षिणी तरफ दिल्ली दरवाज़ा के बाहर का इलाका इंद्रपत कहा जाता है. ये ही पहला शहर था. खान साहब की किताब का अनुवाद करने वालीं राना सफवी के मुताबिक शहर का पहला दस्तावेज़ी सबूत गयासुद्दीन बलबन के वक्त का एक शिलालेख है. सफवी ने बताया कि बलबन (1226-1287) के काल में एक बावली के अंदर शिलालेख स्थापित किया गया जिस पर संस्कृत भाषा में बलबन की प्रशंसा अंकित है. इसमें 12वां पैराग्राफ ऐसा है जिसमें उसकी राजधानी 'ढिल्ली' की भी तारीफ की गई है.