मोदी ने जनसंख्या नियंत्रण की जो बात कही है, उस पर देश को अमल करना चाहिए


स्वतंत्रता दिवस के मौके पर ऐतिहासिक लाल किले की प्राचीर से देश के नाम अपने छठे संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भावी भारत की तस्वीर को बड़े बदलावों एवं बुलन्द इरादों के साथ प्रस्तुत किया। अपने दूसरे कार्यकाल के 70 दिन बनाम 70 साल की उपलब्धियों को 92 मिनट के दूसरे सबसे लम्बे सम्बोधन में उन्होंने नये भारत-सशक्त भारत का संकल्प व्यक्त किया। इस सम्बोधन में उन्होंने अनुच्छेद 370 को जम्मू-कश्मीर से हटाने की ऐतिहासिक एवं साहसिक घटना का 14 बार उल्लेख किया और विश्व समुदाय को सख्त सन्देश दिया कि जम्मू-कश्मीर भारत का अंदरूनी मामला है। वैसे तो उनके सम्पूर्ण सम्बोधन से विश्वास एवं उम्मीद की अनेक किरणें प्रस्फुटित होती हैं, लेकिन उन किरणों में मुख्य है अर्थव्यवस्था को खास तवज्जो देना, घरेलू उत्पाद को बढ़ाना, बढ़ती जनसंख्या पर नियंत्रण पाने के लिये छोटे परिवार को देशभक्त परिवार कहना, निर्यात बढ़ाने एवं डिजिटल पेमेंट पर बल। 2019 के इस उद्बोधन में उनका सबसे बड़ा ऐलान चीफ ऑफ डिफेंस पद की घोषणा है।


प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने देशवासियों की जागृत हुई आकांक्षाओं एवं उम्मीदों को आवाज देकर सिद्ध कर दिया कि वे नया भारत-सशक्त भारत निर्मित करने के संकल्प को आगे बढ़ा रहे हैं और इसमें आने वाली हर चुनौती का मुकाबला करने का सामर्थ्य एवं शक्ति उनमें है, उनकी सरकार में है। वे संभावनाओं से भरे कुशल महानायक हैं, देश की दशा और दिशा बदलने में वे सक्षम हैं, वे एक अरब तीस करोड़ जनता के दिल की भाषा को एवं अन्तर्मन के दर्द को समझने वाले कुशल एवं निष्पक्ष शासक हैं। उनका उद्बोधन और उसका हर शब्द एक आश्वासन है, अंधेरों के बीच रोशनी के अवतरण का प्रतीक है। लेकिन दुर्भाग्य से अब तक कोई ऐसा राजनीतिक महानायक देश की जनता को संदेश देने की मुद्रा में कम ही नजर आया। भले ही भारत की जनता को अंधेरों एवं संकटों से मुक्ति का संदेश किसी न किसी स्रोत से मिलता रहा है। कभी हिमालय की चोटियों से, कभी गंगा के तटों से और कभी सागर की लहरों से। कभी ताज, कुतुब और अजन्ता से, तो कभी राम, कृष्ण, बुद्ध और महावीर से। कभी गुरु नानक, कबीर, रहीम और गांधी से और कभी कुरान, गीता, रामायण, भागवत् और गुरुग्रंथों से। यहां तक कि हमारे पर्व होली, दीपावली भी संदेश देते रहते हैं। लेकिन एक शासक भी इस तरह सन्देश देने की भूमिका अदा कर रहा है और आम जनता के दिलों से जुड़ रहा है, यह सुखद अहसास है। लोकतंत्र की बुनियाद का यह आधार है और एक सफल राष्ट्रनायक की अनिवार्यता भी। मोदी एक ऐसी किरण है, जो सूर्य का प्रकाश भी देती है और चन्द्रमा की ठण्डक भी। और सबसे बड़ी बात, वह यह कहती है कि ''अभी सभी कुछ समाप्त नहीं हुआ''। अभी भी सब कुछ ठीक, नया और सशक्त हो सकता है। वो ठीक, नया एवं सशक्त करना ही मोदी की प्राथमिकता है और इसकी दृढ़ता एवं संकल्पबद्धता उनके इस उद्बोधन से प्रकट हुई। यूं तो वे इस बात का अहसास हर क्षण कराते ही हैं।

 

व्यापार, उद्यम, अर्थव्यवस्था एवं रोजगार को लेकर धुंधलकों के परिव्याप्त होने के संकेत पिछले दिनों में मिले। यहां यह उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री ने देश के उद्योग जगत को यह भरोसा दिलाया कि उसे किसी तरह की आशंका एवं अविश्वास करने की जरूरत नहीं है। सरकार देश के विकास में योगदान देने और रोजगार के अवसर पैदा करने वाले उद्यमियों को मान-सम्मान देने के लिये प्रतिबद्ध है, क्योंकि वे देश की पूंजी हैं। मोदी कॉरपोरेट जगत के साथ खुल कर खड़े नजर आये। यह भरोसा इसलिये जरूरी था कि इन दिनों उद्योग-जगत में कई तरह की अफवाहें सरकार की सख्त नीतियों एवं आर्थिक कठोरता को लेकर जानबूझकर फैलायी जा रही थीं।

 

प्रधानमंत्री ने अर्थव्यवस्था को खास तवज्जो देते हुए कहा कि इन्फ्रास्ट्रक्चर पर 100 लाख करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे। अगले 5 साल में भारत को 5 ट्रिलियन डॉलर इकॉनमी बनाने का लक्ष्य दोहराते हुए उन्होंने कहा कि 130 करोड़ देशवासी यदि छोटी-छोटी चीजों को लेकर चल पड़ें तो यह लक्ष्य हासिल करना असंभव नहीं है। इसके लिए उन्होंने उत्पाद को बढ़ावा देने की बात कही और 'लकी कल के लिए लोकल' का मंत्र दिया। उन्होंने निर्यात बढ़ाने पर जोर दिया और देश को कैशलेस इकॉनमी बनाने की अपील की। प्रधानमंत्री ने कहा कि फिलहाल दुकानों पर 'आज नकद कल उधार' का बोर्ड लगा रहता है, लेकिन अब लिखना चाहिए- 'डिजिटल पेमेंट को हां, नकद पेमेंट को ना'। अनुच्छेद 370 और 35-ए को हटाने के फैसले पर मोदी ने कहा कि हम समस्याओं को न पालते हैं और न टालते हैं। जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाना पटेल के सपने को साकार करने जैसा है।

 

उन्होंने पाकिस्तान का नाम लिए बगैर कहा कि आतंकवाद एक्सपोर्ट करने वालों को बेनकाब करने का वक्त आ गया है। जनसंख्या विस्फोट पर प्रधानमंत्री ने गहरी चिंता व्यक्त की और कहा कि छोटा परिवार-सुखी परिवार और वो ही देशभक्त परिवार है। उन्होंने बताया कि पानी की समस्या को दूर करने के लिए सरकार साढ़े तीन लाख करोड़ रुपये खर्च करेगी। लेकिन उनका यह भी कहना था कि जल संरक्षण का कार्य सरकार तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए, आम जनता को भी इसके लिये जागरूक होना होगा। स्वच्छ भारत अभियान की तरह इसे भी जन-जन तक पहुंचना चाहिए। इसी तरह प्रधानमंत्री ने प्लास्टिक के खिलाफ मुहिम चलाने की जरूरत पर भी जोर दिया और कहा कि लोग 2 अक्टूबर से प्लास्टिक का इस्तेमाल पूरी तरह बंद कर दें। तेज बदलावों वाले इस समय में प्रधानमंत्री का यह संबोधन सभी को अपनी सामाजिक भूमिका पर ठहर कर सोचने के लिए मजबूर करेगा। इसी प्रकार मोदी ने सरकार की अहमियत और आमजन में उसकी दखलन्दाजी को लेकर भी आम जनता के मन की भाषा पढ़ने एवं उनकी शंकाओं का समाधान करने का प्रयास किया।


प्रधानमंत्री का यह सशक्त एवं प्रभावी उद्बोधन जहां उनके राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रचारक होने की झलक देता है तो उनकी सोच एवं कार्यों में 'गांधीवाद' भी सामने आता है। मोदी की 'कथनी और करनी' में कोई अन्तर नहीं है और राष्ट्रीयता की मजबूती ही उनका ध्येय है। उनका उद्बोधन अगले पांच साल के लिये देश के भावी पथ की तस्वीर बयां करता है तो परम्परा के साथ नवीन सोच को जोड़ने की वकालत भी करता है। इसके लिये उन्होंने लोकसभा एवं विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने की आवश्यकता व्यक्त करते हुए कहा कि देश इस बदलाव का इंतजार कर रहा है। बेहतर है कि राजनीतिक दल एक साथ चुनाव कराने पर आम सहमति कायम करें।


 

संभवतः मोदी ऐसे पहले प्रधानमन्त्री हैं जो लाल किले से 'जन सामान्य' की दिक्कतों से जुड़े मुद्दे उठाते हैं। तीन तलाक का विषय भले ही एक धर्म विशेष की महिलाओं से जुड़ा हुआ है परन्तु है तो वास्तव में निजी स्वतन्त्रता के अधिकार से जुड़ा हुआ और निर्भय होकर जीवन जीने के हक से। अतः प्रधानमन्त्री ने लाल किले से इसका जिक्र करके साफ कर दिया है कि किसी भी घर की चारदीवारी के भीतर तक महिलाओं को डर-डर कर जीने की जरूरत नहीं है और अपना पारिवारिक धर्म निभाने के लिए उनका भयमुक्त होना बहुत जरूरी है।

 

मोदी के भाषण में ऐसे अनेक मुद्दे हैं, लेकिन वे तो मात्र माध्यम हैं, लक्ष्य तो मूल्यों की स्थापना है, नया भारत का निर्माण है। इसके लिये सोच के कितने ही हाशिये छोड़ने होंगे। कितनी लक्ष्मण रेखाएं बनानी होंगी। सुधार एक अनवरत चलने वाली प्रक्रिया है। नीतियां तो चार दीवारी बनाती है, धरातल नहीं। मन परिवर्तन और मन के संकल्प ही इसकी शुद्ध प्रक्रिया है। महान् अतीत महान् भविष्य की गारण्टी नहीं होता। मोदी के उद्बोधन से प्रेरणा लेकर मनुष्य एवं व्यवस्था के सुधार के प्रति संकल्प को सामूहिक तड़प बनाना होगा। यदि समाज पूरी तरह जड़ नहीं हो गया है तो उसमें सुधार एवं नवसृजन की प्रक्रिया चलती रहनी चाहिए। यह राष्ट्रीय जीवन की प्राण वायु है, यही नये भारत के निर्माण का आधार है।