अम्बेडकर के नाम को जितना मायावती ने अम्बेडकर के नाम को जितना भुनाया उतना शायद ही किसी ने भुनाया होगा। बाबा अम्बेडकर साहब ही थे जिन्होंने कांग्रेस में रहते हुए जम्मू−कश्मीर के लिए धारा 370 लाए जाने की खुलकर मुखालफत की थी।
बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती ने काफी सोच−समझकर धारा 370 के खिलाफ मतदान किया है। ऐसा करते समय उन्होंने यह भी नहीं सोचा कि उनके इस फैसले से उनका मुस्लिम वोट बैंक खिसक सकता है। संभवतः मायावती को मुस्लिम वोटों से अधिक दलित वोट बैंक की चिंता तो रही ही होगी, इसके अलावा वह यह भी नहीं चाहती होंगी कि कोई उनके ऊपर अम्बेडकर विरोधी होने का ठप्पा लगाए। क्योंकि मायावती की पूरी सियासत संविधान निर्माता और दलितों के मसीहा बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर के इर्दगिर्द ही चलती रही है। अम्बेडकर के नाम को जितना मायावती ने भुनाया उतना शायद ही किसी ने भुनाया होगा। बाबा अम्बेडकर साहब ही थे जिन्होंने कांग्रेस में रहते हुए जम्मू−कश्मीर के लिए धारा 370 लाए जाने की खुलकर मुखालफत की थी। संविधान निर्माता और भारत के पहले कानून मंत्री बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर धारा 370 के इतने धुर विरोधी थे कि उन्होंने शेख अब्दुल्ला को इसके लिए मसौदा तैयार करने से साफ इंकार कर दिया था। शेख अब्दुल्ला ही नहीं तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की भी उन्होंने इस संबंध में नहीं सुनी। डॉ. अम्बेडकर के सख्त रवैये को देखते हुए प्रधानमंत्री नेहरू ने गोपाल स्वामी अयंगर को मसौदा तैयार करने की जिम्मेदारी सौंपी थी।
गोपालस्वामी अयंगर का जन्म 31 मार्च 1882 को तमिलनाडु में हुआ था। 1905 में वह मद्रास सिविल सेवा में शामिल हुए और डिप्टी कलेक्टर और राजस्व बोर्ड के सदस्य सहित कई पदों पर रहे। वह संविधान सभा के सदस्य भी थे। इसके साथ ही वह उस प्रतिनिधिमंडल के प्रमुख भी थे जिसने कश्मीर पर लगातार विवाद में संयुक्त राष्ट्र में भारत का प्रतिनिधित्व किया। अयंगर जम्मू−कश्मीर के महाराज हरि सिंह के दीवान भी रहे।